राकेश केशरी
कौशाम्बी। फिल्मी पर्दे पर दिखने वाली जिंदगी। इंटरनेट, मोबाइल की उपलब्धता। माता-पिता की भागदौड़ भरी जिंदगी, ऐसे तमाम कारण मनोरोगों को जन्म दे रहे हैं। इच्छाएं पूरी न होने पर आत्महत्या, अपराध या फिर यौन विकृतियां इसका नतीजा है। बच्चों से लेकर वयस्कों में यह विकृति बढ़ रही है। मनोरोग विशेषज्ञ डा0 नवीन गुप्ता ने बताया कि बच्चों पर लगातार पढ़ाई का दबाव, स्कूलों में स्टेटस सिंबल के नाम पर कठोर व्यवहार बच्चों को मानसिक रोगी बना रहा है। वहीं घरों में माता-पिता का सानिध्य न मिलना, कमजोर मन पर चोट करता है। अन्य साधन जैसे मोबाइल, कंप्यूटर, नेट, गेम पर निर्भर होता है। पोर्नोग्राफी सहित अन्य फितूर उसके दिमाग में घर करती हैं और यही आत्महत्या, बलात्कार जैसे अपराधों का कारण बनती हैं।