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यूपी में सरकारी पद खाली, लेकिन भर्तियां नहीं।लंबी प्रक्रिया तोड़ रही बेरोजगारों की कमर।

Monday, April 24, 2023

/ by Today Warta



संजय धर द्विवेदी

 लालापुर, प्रयागराज।युवाओं के गार्जियन के अनुसार, सरकार के कुछ लोग चाहते हैं कि उनका सारा काम 'बड़े' लोगों के कंट्रोल में चला जाए। यानी निजीकरण को आगे बढ़ाया जाए। एक विभाग में लेटरल एंट्री स्कीम के जरिए संयुक्त सचिव के पद पर आकर कोई बैठ रहा है, वह दो साल तक काम करेगा और उसके बाद किसी दूसरी कंपनी में जॉब करेगा। उसका ध्यान तो इस बात पर लगा रहेगा कि दो साल बाद कहां पर सेटिंग होनी है।केंद्र हो या राज्य सरकारे यूपी में कई लाख से ज्यादा पद रिक्त पड़े हैं। कई वर्षों से नौकरी मिलने की रफ्तार बेहद सुस्त है। लंबे समय तक लटकी रहने वाली भर्ती प्रक्रिया बेरोजगारों की कमर तोड़ रही है। उन्हें मानसिक पीड़ा पहुंचा रही है।

  भर्ती बोर्ड या आयोगों की लापरवाही के चलते, युवा उम्रदराज हो रहे हैं। देश भर में अब युवाओं के मुद्दे कोई नही उठा रहे है। सरकार की नीयत ठीक नहीं है। जब संसद या विधानसभा में किसी सदस्य का पद रिक्त होता है तो छह माह में वह भर जाता है। सरकारी विभागों में ऐसा क्यों नहीं होता। अगर किसी विभाग में कुल पदों के दस फीसदी पद खाली हैं, तो उन्हें भर्ती के 'मॉडल एग्जाम कोड' के जरिए छह माह की अवधि में भरा जाए।

कोरोना में रैली ठीक है, मगर खाली पदों की भर्ती बंद है।

रामजानकी जनकल्याण समिति के अध्यक्ष शिवेंद्र पांडेय ने बताया, कई वर्षों से देश का युवा परेशान है। उसे समय पर जॉब नहीं मिल रही है। भर्ती प्रक्रिया तीन चार साल तक लटकी रहती है। अनेक प्रतिभागी ओवरएज हो जाते हैं। एसएससी 2018 की भर्ती प्रक्रिया में ऐसा ही हुआ है। 2018 में भर्ती का विज्ञापन निकला था और परिणाम 2021 में आया था। विचार करें कि कितने आवेदक ओवरएज हो गए होंगे। कोविड के दौरान चुनाव हो रहा है। धड़ाधड़ रैलियां हो रही हैं। ये सब महीनों तक चलता है। परीक्षा, जो कि एक या दो दिन की होती है और बड़े सलीके से होती है, उसे कोरोना के नाम पर टाल दिया गया। बतौर अनुपम, इससे बड़ा कुतर्क और क्या हो सकता है। दरअसल सरकार की नीयत में खोट है। सरकार, खुद सच्चाई बताए कि नौकरी क्यों नहीं दे पा रही है। केंद्र सरकार को निजीकरण की एक नई धुन शुरू हुई है, इसके चलते सरकारी नौकरियों से ध्यान तो हटेगा ही। सरकार को अपने विभागों पर भरोसा नहीं है, लेकिन निजी क्षेत्र पर पूरा विश्वास है। ये लोग तो स्वीकार कर बैठे हैं कि देश उन्हें नहीं चलाना है। बस मुनाफे वाले उद्योगों की बोली लगाते जाओ।

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