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शेक्सपियर के नाटकों के पात्र आज भी हमें हँसाते, रुलाते और धीरज बँधाते हैं

Tuesday, April 25, 2023

/ by Today Warta



राजीव कुमार जैन रानू

ललितपुर। महान साहित्यकार विलियम शेक्सपियर की जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि भारत शब्द को ब्रह्म मानता है, परन्तु शब्द भूगोल को नही मानता। इसलिए देशकाल की सीमाओं को तोड़कर शब्द ब्रह्म की व्यापकता को सार्थक करते हुए चतुर्दिक हवा में फैल जाते है। व्यास, वाल्मीकि, कालिदास, तुलसी, शेक्सपियर, गालिब, गेटे के कालजयी साहित्य दर्पण में पूरे जनजीवन का प्रतिबिंबित होने वाला चित्र हम सब की अनमोल थाती है। जब भी कोई किसी इंग्लैंड वासी से सवाल करता है कि यदि चारों ओर जल प्रलय होने लग जाये तो सबसे पहले क्या बचाना चाहोगे? तो उनका एक ही उत्तर था शेक्सपियर का साहित्य। अपने देश में भी ब्रिटिश सरकार एग्रीमेन्ट के आधार पर प्रवासी मजदूरों के रूप में ब्रिटिश गुयाना या ट्रिनीडाड टुबेगो जैसे उपनिवेशों में भेजती थी। उन अभागों के हाथों में संपत्ति के नाम पर यद्यपि कोरा श्रम ही था, किन्तु वे स्वदेश से अपने साथ तुलसीदास की मात्र 40 दोहों वाली पोथी हनुमान चालीसा को जरूर साथ में संकटमोचन के रूप में रखते थे। विश्व के ऐसे दो महान साहित्यस्रृष्टा तुलसी और शेक्सपियर समकालीन थे। मंचों से प्रस्तुत होने वाली रामलीलाओं में तुलसी के संवाद वैसे ही गाये जाते हैं जैसे 457 वर्षो से थियेटरों में प्रस्तुत शेक्सपियर के डायलॉग।शेक्सपियर के सुखांत नाटकों में प्रेम की तीव्र अनुभूति एवं प्रफुल्लित जीवन का हर्षोल्लास भरा है तथा दुखांत नाटकों में नायक के पतन के पीछे उसकी चारित्रिक दुर्बलता परिलक्षित होती है। आन्तरिक अन्तर्द्वन्द प्राय: व्यक्ति की निर्णय क्षमता को कुंठित कर देते हैं। शेक्सपियर की प्रमुख कृति ओथेलो में खलनायक इयागो का चरित्र बेहद सबल है। इस कृति में मानव जीवन की उन गहराईयों का चित्रण है जो अपना अमिट प्रभाव छोड़ती है। शेक्सपियर के सभी किरदार अच्छाई और बुराई से लैस हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें हम अपने आसपास हर समय देख सकते हैं। अपने नाटकों के माध्यम से शेक्सपियर एक इंसान के मन की व्यथा को बड़ी सरलता से लोगों के सामने हुबहू रख देते हैं। उनकी ऐतिहासिक कृतियों में चलायमान सम्राटवादी जर्जर हो रही व्यवस्था के विरुद्ध आगत जनसंघर्ष के तत्व की सजीव झलक पग-पग पर परिलक्षित होती है। इसी कारण पश्चातवर्ती साहित्यकारों ने उनकी आंतरिक और वाह्य कशमकश को बड़े ही कौशल के साथ उकेरा है। उनकी कृति मर्चेन्ट ऑफ वेनिस में शोषण आधारित पूंजी निर्माण और तत्कालीन न्याय व्यवस्था की धज्जियां उड़ा देने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रहने दी।

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