राकेश केशरी
कौशाम्बी। कलुवा भाई किस सोच में डूबे हो। कुछ नहीं हरिया भाई चुनाव परिणाम के बारे में सोच रहा था। का बात है बड़े खलिहर बैठे हो। आपके दरबारी नहीं आए। कल्लू भाई बोले,अब कोई नहीं आने वाला है। ठीक कहते हो कल्लू भाई चुनावी सीजन में चंगू.मंगू आपके इर्द.गिर्द मंडराते हुए नजर आ रहे थे और चुनावी समर खत्म होते ही सरक लिए। हरिया बोला,यह तो पुराना राजनीति पैंतरा हैं जब से होश संभाला है गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले नेता न जाने कितने आए और गए। तब चुनावी इम्तिहान में किसको पास करा रहे हैं। इसके बारे में सटीक कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसी बीच बाबू गुरु की इंट्री होती है। भाई लोग प्रणाम। क्या गुफ्तगू हो रहा है। कुछ नहीं गुरू। बस चुनावी बतकुच्चन चल रही है। गुरू बोले,कल्लू भाई किस प्रत्याशी की स्थिति अच्छी चल रही है। कल्लू बोले,पहले इ बताओ किसको वोट किया है। तभी हरिया तपाक से बोल पड़े। अरे कल्लू भाई गुरूवा त महगुआं क खूब दावत उड़इले बा। कल्लू बोले,का बात कर रहे हो हरिया। सच बोल रहा हूं,यकीन नहीं आता है तो पूछ लीजिए सामने बैइठे हैं। गुरु मुस्कुराए और बोले भाई फ्री का मिला तो दाब लिया। कल्लू बोले,अच्छा इ सब बात छोड़ो और बताओ वोट किसको किया। सच बताए कल्लू भाई खाया पिया महगुआं का,लेकिन वोट किया घुरउवां को। कल्लू बोले,वाह गुरु तुमने मुंह की बात छीन ली। हरिया बोला खुदा कसम कल्लू भाई मैंने तो घुरउवां को वोट किया। इतना ही नहीं उसे सौ.पचास वोट भी दिलवाया हूं। कल्लू बोले,इ अच्छा काम किया,प्रत्याशी योग्य है। नि:संदेह जीतने के बाद नगर का चहुंमुखी विकास करेगा। तब कल्लू भाई,आपने किसके पाले में कितने वोट डलवाए। कल्लू बोले, अब तुम लोगों से झूठ क्या बोलना। चुनावी समर में तरह.तरह के नेता और रुपये का रुतबा दिखाने का भरपूर प्रयास किया। लेकिन मुझे कोई जचा नहीं। आज दस.बीस हजार लेकर यदि मैं किसी की जीत में अपना योगदान करता तो जीतने के बाद वह प्रत्याशी जनता को तनिक भी तवज्जो नहीं देता। गुरु बोले,सौ टका सही कह रहे हो कल्लू भाई। इस बात को लेकर शुरू में संशय था कि किस का समर्थन किया जाए। लेकिन एक दिन घुरउवां आया और पैर पकड़कर जमीन पर बैठ गया। इसके बाद संशय पर विराम लग गया। कल्लू बोले,खुलकर तो नहीं लेकिन अंदर ही अंदर घुरउवां को भरपूर सपोर्ट किया। गुरु बोले,अरे भाई लोग जनता तो अभी से चिल्ला रही है कि अपना घुरउवां जीत गया।