संतुलित आहार की कमी से बच्चों में हो रहा कुपोषण
कौशाम्बी। खानपान में बदलाव,दूध की कमी और कैल्शियम व आयरन युक्त खाद्य पदार्थो के थाली से दूर होने के कारण गर्भवती महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यहां तक कि उनके शिशु को भी नुकसान हो रहा है। यह लापरवाही घातक भी सिद्ध हो सकती है। एनीमिया,आस्यिोपेरिस,अनुवांशिक विकार, एनसिफेलोफिल जैसी बीमारिया हावी हो रही हैं। डाक्टरों की मानें तो पिछले कुछ वर्षो में जहां खानपान की आदत बदली है, वहीं खाने में पौष्टिक तत्वों की कमी भी हुई है। अब संतुलित आहार की जगह फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक व तले भुने भोजन ने ले ली है। संतुलित आहार की कमी ने न सिर्फ लोगों की शारीरिक क्षमताओं को कम किया है, बल्कि इसका सीधा असर महिलाओं में प्रजनन क्षमता पर पड़ रहा है। वहीं शरीर में पोषक तत्वों की कमी का असर गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ता है। इन दिनों गर्भावस्था में कैल्शियम व आयरन की कमी सबसे अधिक सामने आ रही है। जबकि गर्भावस्था में खून की कमी तो होना आम बात चुकी है। हाल ही में एक अस्पताल में आयरन व कैल्शियम की कमी के कारण एक गर्भस्थ बच्चे को चिकित्सकों को समय से पूर्व ही आपरेशन कर जन्म दिलाना पड़ा। इसके चलते बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के सिर में फोड़ा था, जिसे चिकित्सक भाषा में एनसिफेलोफिल यानि दिमाग का फोड़ा कहा जाता है शिशु की यह विकृति मां के लिये घातक हो सकती थी। जिला अस्पताल डा0 विवेक केशरवानी के अनुसार गर्भावस्था में महिलाओं में खून की कमी यानि एनीमिया, कैल्शियम की कमी यानि आस्टियोपेरिस से गर्भ शिशु के दिमाग में फोड़ा यानि एनसिपेलोफिल या किसी और अंग का सही विकास न होना आम बात हो गई है। इसके अलावा भी कई गंभीर बीमारियां हो रहीं हैं। गर्भावस्था में प्रतिदिन 10 मिलीग्राम कैल्शियम, आयरन की एक गोली यानि 60 मिलीग्राम फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है। जबकि खून की मात्रा यानि हीमोग्लोबिन का स्तर कम से कम 10 होना चाहिए। वहीं इन सब बीमारियों से बचाव के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए।
इन बातो का रखे ध्यान
गर्भावस्था में कम से कम पांच बार महिला चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। गर्भावस्था में कम से कम 10 किलोग्राम का वजन बढ़ाना चाहिए। दाल, चावल, रोटी, दूध, दही, गुड़, चना, हरी सब्जी ज्यादा लेनी चाहिए। जबकि दिन में दो घंटे व रात्रि में छह घंटे की नींद जरुर लेनी चाहिए। गर्भावस्था में दांतों के बीच कभी मसूड़ों से खून आ जाए तो पायरिया जैसी बीमारी हो जाती है। जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को इंफेक्शन हो जाता है। ऐसे में समय से पूर्व डिलीवरी होने का खतरा रहता है। डिलीवरी के बाद 10 महीने तक बच्चे को दूध पिलाना जरुरी है।