आखिर कहां गुम हो गए सपनों के सौदागर
कौशाम्बी। चुनाव के समय आए, सपने दिखाए, वोट बटोरे और चल दिए। आश्वासनों का झुनझुना थमाया,अपने को गरीबों का हमदर्द बताया, इसके बाद गांव का रास्ता भूल गए। कहा था कि बिजली और बत्ती देंगे पर ये नहीं कहा था कि पक्की छत की जगह परछित्ती देंगे। कहा था गांव का विकास कराएंगे, नई-नई योजनाएं लाएंगे,पर ये नहीं कहा था कि इसके लिए बहुत रूलाएंगे। चुनाव के दिनों के समय नजारा अजब-गजब होता है। सभी जनसेवक होने का दम्भ भरते हैं और चुनाव हो जाने के बाद जनता इन्हें गुमशुदा बच्चे की तरह तलाश करती है लेकिन यह जल्दी नजर नहीं आते हैं। सिराथू विकास खण्ड के ग्राम भदवां की आबादी पांच हजार के आसपास है लेकिन सुविधाओं के नाम पर यह गांव काफी खाली-खाली नजर आ रहा है। असुविधाएं उबाल खा रही हैं तो सुविधाएं शांत बैठी हैं। सुविधा और असुविधा के घनचक्कर में ग्रामीण पिस रहा है। जलनिकासी के लिए नालियों की व्यवस्था है लेकिन वक्त के दीमक ने इस व्यवस्था को तार-तार कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि नालियां ध्वस्त हो गईं। लोगों के घरों का गंदा पानी उफनकर सड़कों पर आ गया और लोगों का राह चलना दूभर कर दिया। आखिर कहां तक बचे गंदे पानी से उसकी छींटे तो शरीर पर पडनी ही पडनी है। यदि गांव की सड़कों को देखें तो कुछ जगहों पर आरसीसी सड़क है तो कुछ जगहों पर खडिंजा मार्ग लेकिन दोनों मार्ग खस्ताहाल हैं। जगह-जगह गड्ढे हैं। लोग उन गड्ढो में फसकर चोटहिल हो जाएं तो उसे अतिशयोक्ति नहीं कहा जा सकता। साफ-सफाई की व्यवस्था पर भी प्रश्र चिन्ह लग रहा है। गांव को साफ-सुथरा रखने के लिए शासन ने सफाई कर्मियों की नियुक्ति की लेकिन यहां के वाशिंदो को मानें तो उन्होंने अभी तक सफाई कर्मी को देखा नहीं है। इस वजह से गांव की नालियां कूड़ों से पटी हैं। कमोवेश यही हालत सड़कों की है। अगर गांव के बाहर की सड़क को देखें तो वह कूड़ादान में तब्दील हो चुका है। गांव घुसते ही कूड़ा से पटी यह सड़क नजर आती है। कहने को तो यहां तकरीबन तीस हैण्डपम्प हैं जिनमें लगभग 14 हैण्डपम्प खराब हैं। इससे लोगों के सामने पेयजल संकट है। लोगों की भीड़ दुरूस्त हैण्डपम्पों पर सुबह से ही लग जाती है। पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। बिजली प्रसाद, गंगा प्रसाद, पार्वती आदि का कहना है कि जब अभी से यह हालात हैं तो,इतने कम हैण्डपम्पों से लोगों की प्यास कैसे बुझेगी। सुनील कुमार, रामप्रसाद का कहना है कि जिम्मेदारों को इन बिगड़े हैण्डपम्पों की ओर ध्यान देना चाहिए लेकिन उनकी उदासीनता जनसुविधाओं पर भारी पड़ रही है। गांव में तमाम ऐसे लाभार्थी हैं जिनको सरकारी योजनाओं का लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है। किसी के पास वृद्वा पेंशन नहीं तो है तो कोई विधवा पेंशन के लिए परेशान है, कोई एक अदद कालोनी के लिए परेशान है तो कोई गांव की सफाई को लेकर हलाकान है। बिजली प्रसाद का मकान पूरी तरह ध्वस्त है। एक अदद सरकारी कालोनी चाह रहे हैं लेकिन इन्हें यह सुविधा नहीं मुहैया कराई जा रही है। काफी वृद्व हैं लेकिन इनके पास वृद्वा पेंशन नहीं है। विधवा पार्वती देवी बीमारी से जूझ रही हैं, इन्हें दिखाई भी नहीं पड़ता है। पैरों से चल भी नहीं पाती हैं। ऐसे लाचार की मदद होनी चाहिए लेकिन बड़ा सवाल है कि जिम्मेदारों ने इन्हें सुविधाएं देने से गुरेज किया है। आज इन्हें जरूरत इलाज की है, दो जून रोटी की है। ऐसी व्यवस्था जिम्मेदारों को करनी चाहिए। लेकिन सवाल यह उठता है कि शासन स्तर से चली सुविधाएं कहां चली जाती हैं ?