हरिशंकर पाराशर
बिना चेहरा बना रहेगा पूरा कंट्रोल
1998 के बाद से ही सोनिया गांधी रहीं अध्यक्ष
राहुल गांधी को भी मिली थी कमान
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरह अब कांग्रेस भी सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बैठाकर पीछे से पूरी बागडोर संभालेगी। इसका मकसद पार्टी में नेताओं के बीच संतुलन संगठन की मजबूती और जनहित सर्वोपरि का सिद्धांत अपनाना है। वर्तमान में गांधी परिवार से इतर का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की पूरी तैयारी है। इसके लिए अशोक गहलोत, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह सहित कई नाम चल रहे हैं। लेकिन एक बात तय है कि अध्यक्ष कोई भी बने लेकिन सत्ता की कमान पर्दे के पीछे गांधी परिवार के पास की रहेगी।
कांग्रेस पार्टी में ढाई दशकों के बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हो रहा है और इस मुकाबले से गांधी परिवार बाहर है। साफ है कि अशोक गहलोत, शशि थरूर या फिर किसी भी नेता के अध्यक्ष बनने पर पहली बार गांधी फैमिली बैकसीट पर होगी और वहीं से पार्टी चलाएगी। 1998 के बाद से ही सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष रही हैं और बीच में राहुल गांधी को भी कमान मिली थी, जिन्होंने 2019 के आम चुनाव के बाद पद छोड़ दिया था। उसके बाद फिर से सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष बन गई थीं। इसके चलते परिवारवाद का आरोप लग रहा है।
लेकिन दशकों बाद कांग्रेस पूरी तरह से बदलाव के मूड में है और ऐसा लगता है कि इसकी सीख भी वह उसी आरएसएस से लेती दिख रही है, जो भाजपा का मेंटॉर है। दरअसल भाजपा भले ही आरएसएस का आनुषांगिक संगठन कही जाती है, लेकिन संघ ने कभी भी उसका नेतृत्व नहीं किया है। आरएसएस की लीडरशिप हमेशा से संघ में अपने नेताओं को संगठन मंत्री के तौर पर भेजता रहा है और पीछे से ही पार्टी को मैनेज करने की कोशिश करता रहा है। आडवाणी का जिन्ना प्रकरण के बाद इस्तीफा हो या फिर नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाने का फैसला, बीते दो दशकों में भाजपा में हुए ये अहम फैसले संघ के ही इशारे पर लिए गए थे।
परिवारवाद के आरोपों से मलेगा छुटकारा
फिर भी कभी संघ सामने आकर भाजपा की सियासत में शामिल नहीं रहा है। माना जा रहा है कि गांधी फैमिली अब ऐसी ही रणनीति अख्तियार करना चाहता है। इससे वह पार्टी को मैनेज भी कर सकेगा और किसी अन्य नेता के फेस बनने से उसे सीधे तौर पर विपक्षी दल टारगेट भी नहीं कर सकेंगे। आने वाले दिनों में गांधी परिवार की इस रणनीति का फायदा देखने को मिल सकता है। बता दें कि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी ही बीते कुछ वक्त से कांग्रेस का चेहरा रहे हैं और उसके चलते परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं। अब इस टैग से भी गांधी परिवार मुक्ति पा सकेगा।
ओबीसी वर्ग के वोटों पर कांग्रेस की भी होगी दावेदारी
एक दौर में कांग्रेस दलित, मुस्लिम और ब्राह्मणों समेत कई सामाजिक वर्गों की पार्टी थी, लेकिन बीते कुछ दशकों में उसका वोट बैंक कम होता गया है। ब्राह्मणों, मुस्लिमों और दलितों का वोटबैंक अब उसके पास नहीं रहा है। इसके अलावा ओबीसी वोटों की दावेदारी में भी वह कमजोर रही है। ऐसे में यदि अशोक गहलोत जैसे नेता को वह पार्टी की कमान देती है तो कम से कम एक वर्ग में उसकी दावेदारी बढ़ सकेगी।