कौशाम्बी। पेट की आग बुझाने को लोग क्या क्या नहीं करते हैं,कोई हाड़तोड़ मेहनत करता है तो कोई हैरत अंगेज करतब में अपनी जान की बाजी लगाकर शाम को दो वक्त की रोटी जुटा पाता है। शहर हो या कस्बा हर जगह ऐसे बाजीगर देखने को मिल जायेंगे तो लोगों को दांतो तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देते हैं। उसके बदले उन्हें केवल चंद सिक्के ही नसीब होते हैं। मंगलवार को कड़ाधाम में कुछ युवक लोगों को तरह.तरह के खेल दिखा रहे थे। भरत आंख की पलकों से सुई को उठा रहा था तो जैकी बोतल पर खड़े होकर नाच रहा था। आरती ने अपनी गर्दन से सरिया मोड़ दी,तो हिना ने जीभ को धागे से सिल दिया। इस तरह के अनेकों करतब थे,जो लोगों को हतप्रभ कर रहे थे लेकिन इसके पीछे जो मार्मिक कहानी है वह वास्तव में उस भारत का चित्रण करती है जिसे लोग कभी सोने की चिडिया कहते थे। मूलरूप से गुजरात से घुमंतू होकर देश भर में इस तरह के करतब दिखाते हैं। इस समय उन्होंने अपना अड्डा इलाहाबाद के बमरौली में बना लिया है। कलाबाजों के मास्टर अजय के मुताबिक यह उनका अभ्यास है और पुश्तैनी धंधा है। यही वजह है कि तीन पुश्तों से कोई स्कूल नहीं गया है।