राकेश केसरी
अम्बे है,मेरी मा, दुर्गे है,मेरी मां,गीतो से गुजायमान रहा वातावरण
कौशाम्बी। जिलें के कडाधाम स्थित मांता शीतला मंदिंर,मंझनपुर स्थित दुर्गा मंदिर,पश्चिमशरीरा स्थित झारखण्डी मांता मंदिर सहित अन्य देबी मंदिंरो व पूजा पंण्डाल में नवरात्र पर्व के पाचवें दिन देबी भक्तों ने स्कन्दमाता स्वारूप की पूजा-अर्चना की। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक परिव्याप्त रहता है। पुराणो के अनुसार पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अत: मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
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पाचवें दिन हुआ कन्या भोज का आयोजन
नवरात्रि के पाचवें दिन शुक्रवार को जिले भर में तमाम लोगो ने अपने घरों में नौ देबियो के स्वारूप कन्याओ के पैर धुलाकर उनकी पूजा करने के बाद उन्हें हलुवा,पूडी व खीर का भोजन कराया। और विदाई में अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी दिया। इसी तरह से दारानगर के म्योहरा के पूजा पाण्डाल में महिलाओं के द्वारा कन्याओ को भोजन कराने के बाद उन्हे दक्षिणा दी गई।
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पूजा पाण्डालो में सांस्कृतिक कार्यक्रमो की धूम
कौशाम्बी। जिले भर करीब एक हजार पूजा पाण्डाल सजाये गये है। जहां देर रात्रि तक आरती,भजन व सास्कृतिक कार्यक्रमो की धूम रहती है। वही पूजा समिति के आयोजको द्वारा देश भक्ति,स्वच्छता सहित मयार्दा पुरूषोत्तम भगवान राम की लीलाओ का भी प्रर्दशन कर समाज को उनके आर्दशो पर चलने का संदेश दिया जा रहा है।
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शक्तिपीठ कडा धाम में श्रद्धालुओं ने स्कंदमाता के स्वरूप में माता का किया दर्शन
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: , नवरात्रि के पावन पर्व में पांचवें स्वरूप में श्रद्धालुओं ने मां स्कंदमाता की अराधना की,देबी का यह स्वरूप नारी शक्ति का सजीव चरित्र है,स्कंद कुमार की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पडा। कडा धाम के पुरोहित पं0 मदन लाल किंकर बताते हैं कि गणेश जी देबी के मानस पुत्र है और कार्तिकेय जी गर्भ से उत्पन्न हुए हैं,तारका सुर को वरदान था कि वह शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न पुत्र द्वारा ही मृत्यु को प्राप्त हो सकता है,इसी कारण देबी पार्वती जी का शंकर जी से मंगल परिणय हुआ,इससे कार्तिकेय का जन्म हुआ और तारकासुर का वध हुआ। शंकर पार्वती के मांगलिक मिलन को सनातन संस्कृति में विवाह परंपरा का प्रारंभ माना गया कन्या दान, गर्भ धारण इन सभी कि उत्पत्ति शिव और पार्वती प्रसंगोपरांत हुए।

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