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विलुप्त होने की कगार पर है मिट्टी के बर्तन बनाने की कला

Friday, October 21, 2022

/ by Today Warta



राकेश केसरी

हाईटेक युग में विद्युत झालरों ने खड़ा कर दिया संकट 

कौशाम्बी। एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता था। पानी की बूंदें इनमें पड़ते ही उठने वाली सोंधी.सोंधी खुशबू के लोग दीवाने थे। जैसे.जैसे समय बदलता गया उनके रहन.सहन में भी बदलाव आया। अब लोग मिट्टी के बर्तन की जगह प्लास्टिक की बनी चीजों का इस्तेमाल करते हैं। विद्युत झालरों के आ जाने के कारण लोग अपने घर की साज सज्जा इन्हीं से करते हैं। पहले दिवाली पर मिट्टी के बने दिए जलाए जाते थे,परंतु पुरानी परंपरा बंद होती जा रही है। इसके कारण मिट्टी के घड़े,दीया और मूद्दतयां बनाने वाले कुम्हार मुश्किल हालातों से गुजर रहे हैं। एक समय था जब लोग कुम्हार के हाथ से बने दीये को भगवान के सामने जलाकर घरों को रोशन तो करते ही थे, छतों की मुंडेर और घर के बाहर भी रखकर रोशनी बिखेरते थे। अब आधुनिक सुविधाओं की वजह से परंपराओं को भूल रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा असर उनकी जिंदगी पर पड़ता है। जो इसी के जरिए रोजी रोटी कमा रहे हैं। हालत यह है कि आज कुम्हार व इस धंधें से जुड़े लोग गुमनामी की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं। पहले प्लास्टिक व स्टील के बर्तनों ने उनकी आय के साधनों का आधा कर दिया। इसके बाद पीओपी ने कुम्हारों को सड़क पर लाकर पटक दिया है। अब चाइना से आ रही दीपक व मूर्तियों ने उन्हे दूसरे काम करने पर मजबूर कर दिया है। क्षेत्र में इस धंधे में जुड़े लोगों ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि दस सालों से प्लास्टिक पीओपी और चाइना के सामानों ने उनके काम पर गहरी चोट की वहीं मिट्टी की बढ़ती कीमतों ने आग में घी डालने का काम किया। इसकी वजह से लगभग सत्तर फीसद कुम्हार अपने पैत्रिक व्यवसाय को छोड़कर दूसरा काम करने लगे। कुम्हारी कला व्यवसाय से जुड़े नारा गांव के अजरुन कुम्हार ने बताया कि पहले दीपावली के समय में वह मिट्टी के दिए बेचकर परिवार के खाने के लिए छह माह का राशन इकठठा करते थे। वहीं वर्तमान में तो रोज की मजदूरी भी निकाल पाना मुश्किल हो रहा है। पुरानी परंपरा कायम रहे इसके लिए वह इस धंधे से जुड़ा हुआ है। जबकि बाजार में जब मिट्टी के बने बर्तन व दीये लेकर वह बेचने को जाता है तो चाइनीज व विद्युत के बने उपकरणों के सामने इसके मिट्टी के बने बर्तन को कोई नही पूछता। वहीं जो थोड़ी बहुत बिक्री होती भी है,लागत ही निकल पाती है, क्योंकि मिट्टी भी अब खरीदनी पड़ रही है। 

प्रशासन से भी नही मिल रही मदद

मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी खरीद कर लाना पड़ता है। तब जाकर बना कर बाजार में बेचता है। इसके लिए शासन द्वारा गांव में मिट्टी के लिए पट्टे अवांटित किए जाते थे। परंतु बदलते परिदृश्य में प्रशासन के द्वारा इस जाति के लोगों को कोई सुविधा नही मुहैया कराई जा रही है। 

बल्ब व झालरों से पटा बाजार 

दीपावली का पर्व आने को है। ऐसे में क्षेत्र के बाजारों की दुकानों में घर की साज सच्जा के लिए बल्ब व झालर,ट्यूब लाइटों की दुकानों में भरमार है। इनकी खरीददारी के लिए लोगों को खासी भीड़ लगी रहती है। ज्यादा महंगे दाम से लोग इनको खरीदतें है। जबकि मिट्टी की बनी दीयों की तरह लोगों का रूझान नही रहता। 


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