राकेश केसरी
कौशाम्बी। जिला मुख्यालय मंझनपुर समेत ग्रामीण अंचलों में दशहरा पर्व परंपरागत ढंग से मनाया गया। लोगों ने घरों में पूजा,अर्चना की। इस दौरान लोगों नें भगवान श्रीराम के चित्र पर माल्यार्पण कर उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प दोहराया। दशानन रावण,उसके पुत्र मेघनाद और भाई कुंभकरण के पुतलों को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा बुधवार को जिला मुख्यालय मंझनपुर, दारानगर, शमसाबाद, मनौरी, सरायअकिल, शहजांदपुर आदि कस्बों में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया, रावण दहन कार्यक्रमों के दौरान पुतलों में लगे पटाखे जैसे ही फटने शुरू हुए लोगों का हुजूम खुशी से झूम उठा,पुलिस की मुस्तैदी के बीच जिलें के अलग-अलग हिस्सों में दशहरा शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। गौरतलब हो कि दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रुधिर में वीरता का प्रादुर्भाव हो इस कामना के साथ दशहरे का उत्सव मनाया जाता है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। इस पर्व को भगवती के विजय के नाम पर भी विजयादशमी कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चैदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों,काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर, अहंकार,आलस्य,हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोडने की प्रेरणा हमें देता है।
विजय दशमी पर शमी वृक्ष की हुई पूजा
पुराणों के अनुसार दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुन: बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहँ नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया,तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्र जी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है।