राकेश केसरी
गंतव्य के बजाय दूसरी जगह सामान पहुंचना आम समस्या
कौशाम्बी। बाहर से माल मंगाकर जिले में व्यापार करने वाले कारोबारी कई कारणों से रेलवे की पार्सल सेवा से किनारा करने लगे हैं। बुक कराए गए सामान को ट्रेनों से गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी नहीं मिलने, पार्सल अनुभाग के कर्मचारियों द्वारा आर्थिक दोहन किए जाने, रेल ट्रांसपोर्ट से मंगाए गए माल में टूट-फूट होने आदि कारणों से खिलौना और होजरी व्यवसाइयों ने भी रेलवे पार्सल सेवा पर रोड ट्रांसपोर्ट कंपनियों को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। नतीजे में पार्सल अनुभाग को मालभाड़ा की मद में होने वाली आय में करीब पचास फीसदी की गिरावट आ गई है। उत्तर मध्य रेलवे के सिराथू व भरवारी स्टेशन के पार्सल अनुभाग में पार्सल अधीक्षक सहित कई कर्मचारी कार्यरत हैं। इन कर्मचारियों में बुक कराए गए माल की लोडिंग-अनलोडिंग करने वाले पोर्टर भी शामिल हैं। दो दशक पहले तक यहां के व्यापारी बाहर से कच्चा माल मंगाने और माल भेजने के लिए रेलवे पार्सल सेवा को तरजीह देते थे। इसी तरह कानपुर, दिल्ली आदि स्थानों से सब्जी, किराना, जनरल स्टोर, प्लास्टिक गुड्स, होजरी आदि का सामान मंगाने के लिए व्यापारी रेल पार्सल सेवा पर काफी भरोसा करते थे। रेलवे से माल मंगाने और भेजने का यह सिलसिला एक दशक पहले तक कायम रहा। उन दिनों स्टेशन पर प्रतिमाह औसतन एक हजार पार्सल पैकेट बुक होते थे। उनसे औसत आमदनी भी तीन से चार लाख रुपये मासिक होती थी। बुक हुए पार्सल पहुंचाने की कारगर व्यवस्था नहीं होने, बुक कराए गए माल की समय से डिलीवरी की गारंटी नहीं मिलने आदि कारणों से रेलवे पार्सल कम हुए और आमदनी घटने लगी। जबकि ट्रांसपोर्ट कंपनियां बुक कराए गए माल को सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी देने के साथ व्यापारियों की मांग पर उनका माल संबंधित प्रतिष्ठानों पर अनलोड करा देती हैं। रेलवे पार्सल की तरह बुक कराया गया माल गंतव्य से आगे निकलने की दुविधा भी नहीं होती। व्यापारियों द्वारा माल मंगाने-भेजने के ट्रेंड में आए इस बदलाव की कीमत रेलवे को चुकानी पड़ रही है। यही वजह है कि अब प्रतिमाह बमुश्किल सौ से दो सौ पार्सल बुक हो रहे है और उनसे होने वाली आमदनी भी घट गई है।
रेलवे के पार्सल कर्मी,करते हैं काफी परेशान
सिराथू कस्बे के होजरी व्यापारी दिनेश केशरवानी व ध्रुव केशरवानी का कहना हैं कि रेलवे से माल बुक कराने पर पार्सल अनुभाग के कर्मचारी हर जगह परेशान करते हैं। उनकी कोशिश व्यापारियों का आर्थिक दोहन करने की होती है,उनको सुविधा देने की नहीं। दिल्ली में माल लोड कराना हो या फिर यहां अनलोड, हर जगह कर्मचारी हाथ फैलाए रहते हैं।
रोड ट्रांसपोर्ट कंपनियां कम लेती हैं किराया
सिराथू कस्बे के शू विक्रेता टनटन केशरवानी का कहना हैं कि रेलवे पार्सल सेवा में कई झंझटों के अलावा माल भाड़ा भी अधिक है, जबकि रोड ट्रांसपोर्ट कंपनियां कम किराए में गोदाम तक पहुंचता माल देकर ढुलाई खर्च की भी बचत होती हैं। पार्सल नग की लंबाई एक इंच बढ़ जाने पर रेलवे को दोगुना भाड़ा देना पड़ता है,जबकि प्राइवेट ट्रांसपोर्टर्स ऐसा नहीं करते।