आचार्यश्री विद्यासागर के अवतरण दिवस पर गौशाला परिसर में शरद पूर्णिमा पर प्रतिभास्थली भवन शिलान्यास
ललितपुर। श्री दयोदय पशु संरक्षण केन्द्र गौशाला के प्रतिभास्थली के प्रागण में निर्यापक मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि आज व्यक्ति सिर्फ अपने या अपनों के फायदे के लिए ही सोचता है इसलिए वह विमटता जा रहा है जितनी छोटी सोच उतना कम लाभ। अपनी सोच को बहुत विशाल और व्यापक बनाना है, जो महापुरूष होते हैं वह व्यापक सोचते हैं वह पूरे विश्व को अपना परिवार समझते हैं। वह सारी दुनिया के जीवों के सुख में सुखी और दुख में दुखी होते हैं उनकी भावना, करूणा, दया, प्रेम, क्षमा, सब व्यापक है पर आज के स्वार्थी मनुष्य की सेाच अपने परिवार तक ही सीमित है। उन्होंने कहा कि जीवन में बही महान है जिसको सुख देने में आनंद आता है। आज जगत पुण्यहीनों से भरा पडा है स्वार्थी व्यक्ति पुण्यहीन होता है और धर्मात्मा पुण्यशाली। शरद पूर्णिमा पर आचार्य गुरूवर विद्यासागर महामुनिराज के अवतरण दिवस पर उनकी महिमा गाते हुए मुनिश्री ने कहा कि मेरे गुरूवर महान हैं उनकी दुनिया के सभी जीवों के प्रति करूणा और दया को देखता हॅू तो राम रोम पुलकित हो जाता है। उनकी सोच आकाश से भी उॅची है। मनुष्य की बात तो दूर गाय आदि पशु पक्षियों के भी दुख देख कर उनका मन रोता है। दुनिया के प्रत्येक जीव के प्रति उनके दिल में करूणा है सही मायने में वह अहिंसा के पुजारी हैं। उन्होंने कहा कि जीवों के सुख की खातिर उन्होंने अपने आपको मिटा दिया आज इस धरती पर वह सबसे पुण्यशाली हैं। उनकी इतनी तपस्या प्रेम करूणा दया वैराग्य की किसी एकान्त स्थान या पर्वतों की कंदराओं में बैठ कर साधना कर सकते थे। पर जगत के जीवों को उॅचा उठाने में उन्हें आनंद आ रहा है। उनकी इतनी त्याग और तपस्या तथा व्यापक सोच है कि दुनिया दुखों से दुखी है अगर मैं उनके आंसू पोंछ सकूॅ उनके चेहरे पर मुस्कान लौटा सकूॅ तो यही मेरा धर्म है। साधु स्व-पर कल्याण करने वाले होते हैं वह अपना तो कल्याण कर ही रहे लेकिन अपनी विशुद्ध भावनाओं और हितकारी उपदेशों के द्वारा जलगत का भी कल्याण हो जाये तो वह गतिशील रहते हैं इससे पीछे नहीं हटते। उन्होंने नि:स्वार्थ प्रेम की परिभाषा बताते हुए कहा कि सच्चे धर्मात्मा का प्रेम गौवत्स के समान होना चाहिए जैसे गाय अपने वछडे से निस्वार्थ प्रेम करती है। गाय बका बछडे से किंचित मात्र की स्वार्थ नहीं बछडा बुढापे में भी काम नहीं आता फिर भी उसका बछडे के प्रति प्रेम जगत प्रसिद्ध है। उसी प्रकार हमारे गुरूवर आचार्य विद्यासागर उनके न बच्चे न परिवार वो तो वाल ब्रहमचारी हैं फिर भी जगत के लोगों सेऐसी प्रीति कि अपना आत्म उपयोग छोड कर जगत के जीवों के उठाने का भाव। यह है एक महान व्यक्तित्व की बडी सोच। स्वार्थ पूर्ण प्रबृति पर प्रहार करते हुए कहा कि आज भाई ही अपने सगे भाई का दुश्मन हो गया है, एक धर्म, एक गुरू, एक मां से उत्पन्न भाई ही आपस में लड रहे हैं आज साधर्मी को ही नीचे गिराने की प्रति स्पर्धा चल रही है धर्म और गुरू के नाम पर लोग अपने अपने अहंकार को पुष्ट कर रहे हैं। उन्होंने जगत के लोगों को चेताते हुए कहा कि धर्म तो वैर भाव मिटाता है पर आज धर्म के ही नाम पर लोग लड रहे हैं। धर्म तो पेड की छाया के समान होता है जिसमें बैठकर लोग सुख शान्ति का अनुभव करते हैं। प्रतिभास्थली की वहिनों के त्याग और समर्पण के वारे में कहा कि पढाने वाली सभी वहिनें वाल ब्रहमचारिणी हैं सभी उच्च शिक्षा में पारंगत हैं होन हार हैं उनका अपना कोई घर परिवार नहीं सिफ आचार्य श्री विद्याससागर महाराज के चरणों में समर्पण किया है और अपना जन्म स्थान छोड कर छोटी छोटी बेटियों को निस्वार्थभाव से पढा रही है और नारी जगत का उद्धार हो, अपने गुरू की इस महान परिकलपना को साकार कर रही हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिभास्थली मात्र शिक्षा का केन्द्र ही नहीं अपितु संस्कारों का महातीर्थ है। प्रतिभास्थली में सारे जगत की वेटियां पढेंगी और शिक्षा के साथ संस्कार भी अपनायेंगीं।