इन्द्रपाल सिंह प्रिइन्द्र
ललितपुर। क्षेत्रपाल मंदिर में मुनिश्री सुधासागर महाराज ने कहा कि प्रत्येक बस्तु का अपना गुण धर्म है अपना स्वभाव है। नमक का स्भाव खारापन, पानी का स्वभाव शीतलता उसी प्रकार कुत्ते की टेडी पूॅछ ही उसका स्वभाव है, जिस कुत्ते की पूॅछ सीधी है समझ लेना वह पागल है। व्यक्ति सांप को देखता है तो काल नजर आता है क्यों कि उसमें जहर है और अगर सांप से पूॅछो तो वह कहेगा मेरे पास जहर है यही मेरी जिन्दगी है, जहर ही उसका रक्षक हे हम सांप को सांप की दृष्टि से नहीं देख रहे हम उसे अपनी दृष्टि से देख रहे हैं हम अपना नफा नुकसान देखते हैं इसलिए प्रत्येक बस्तु को अपने नजरिये से देखते हें। मुनिश्री ने कहा कि दुनिया में दो दृष्टिकोंण होते हैं एक दुश्मन का दूसरा उपकारी का। दुश्मन का दृष्टिकोंण ये होता है कि वह सामने वाले वयक्ति को कुछ अच्छा देना नहीं चाहता क्यों कि अगर हम इसको कुछ अच्छी बस्तु अच्छी बातें या अच्छा रास्ता बता देंगे तो ये सुखी हो जायेगा क्यों कि वह सामने वालों को सुखी देखना ही नहीं चाहता। बुरे दृष्टिकोंण वाला सामने वाले की भलाई कर ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि सब लोग अपने गिरेवान में झांकें कि सामने वाले के प्रति तुम्हारा कैसा नजरिया है क्या तुम सामने वाले को सुखी देखना पसंद करते हो या उसकी बरबादी के लिए भगवान से दुआयें मांगते हो। उन्होंने कहा कि महावीर की वाणी है कि तुम सामने वाले को दुखी करने का भाव क्यों करते हो क्यों कि वयक्ति का जब भी बुरा होगा उसके अपने कर्मों के द्वारा होगा तुम क्यों उसके वारे में बुरा सोचकर पाप कमा रहे हो। दूसरा दृष्टिकोंण होता है मित्रवत जो परम उपकारी है व्यक्ति बस्तु मांग रहा पर वो नहीं दे रहा क्यों कि उस बस्तु के देने से उसका अहित हो सकता है, मांगने पर भी नहीं दे रहा जैसे बेटा मांग रहा और मां नहीं दे रही क्यों कि देने से बच्चे का अहित हो सकता है समझ लेना वह परम उपकारी है हितेषी है मां को मालूम है, वल प्रदान करने वाली है पर मां को बच्चे की तासीर का पता है कि अगर बच्चे के मांगने पर उसके प्रति दिखायी तो बच्चा बीमार हो जायेगा इसलिए अच्छी बस्तु को भी देखने से इंकार कर दिया। यह है परम उपकारी का दृष्टिकोंण। बेटा प्राणों से प्यारा है, फिर भी बस्तु देने से इंकार कर रही है। उन्होंने कहा कि वैद्य के हाथ का जहर और दुश्मन के हाथ का अमृत भी नहीं पीना क्यों बैद्य जहर भी देगा तो तम्हें निरोग करने के लिए देगा वह जहर भी अमृत बन जाता है और दुश्मन के हाथ का अमृत भी बिष का काम करता है। उन्होंने कहा कि वैद्य हमारा अहित नहीं कर सकता और दुश्मन कभी अच्छा नही ंसोच सकता। प्रभु श्री राम के जीवनका बहुंत सुन्दर प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब लक्ष्मन जी को शक्ति लग गई और उपचार की बतायी तो दुश्मन पक्ष के वैद्य को लंका से बुलाया गया प्रभु राम ने कहा भले ही वैद्य लंका से आया हो पर मुझे विश्वास है कि वैद्य किसी पक्ष का नहीं होता वैद्य तो रोग का उपचार करता है। वैद्य कभी भी अहित नहीं करता रावण पक्ष का वैद्य होने पर भी संदेह नहीं किया।