राकेश केसरी
पांचवी के छात्र को नही आता पांच का पहाडा,एक शिक्षक पर पचास छात्रों की जिम्मेदारी
कौशाम्बी। प्राथमिक उच्य प्राथमिक शिक्षा छात्रों के लिए कभी वरदान साबित होती थी। जो पढ लिखकर डिप्टी कमिशनर बन कर जिले का नाम रोशन करते थे। लेकिन इस युग मे केवल प्राथमिक स्कूल मे पढने वाला कक्षा पांच का छात्र पांच का पहाडा तक नही बता पा रहा है। एक शिक्षक पचास छात्रों का बोझा है। जिसमे अध्यापक बच्चों को भेंड की तरीके घेर कर केवल समय बिता रहा है। यदि नकल को रोकना है तो प्राथमिक शिक्षा के स्कूलो का सुधार करके शिक्षा का स्तर सुधारा जा सकता है। आज से 50 वर्ष पहले प्राथमिक स्कूलो मे बच्चो को अध्धा पौवा,ढैया रत्ती मांसा की पढाई होती थी। जिसमे बच्चे पढ लिख कर अफसर बनकर लोगो की सेवा इमानदारी से करते थे। स्कूलो मे माह मे एक दो बार डिप्टी निरीक्षण करके बच्चों मे पठन पाठन की जांच करके उसमे सुधार करने की अध्यापको को सुधार करने की हिदायत देते थे। लेकिन आज के दौर मे केवल अध्यापक वेतन विसंगतियो की मांगो को लेकर धरना प्रर्दशन करने मे व्यस्त रहते है। इस समय का पठन पाठन ऐसा है। कि पाच दर्जा लडका पास हो गया। लेकिन उसको पांच का पहाडा नही आता है। कक्षा एक मे पढने वाला बच्चा दस तक की गिनती नही पढ पा रहा है। तीन चार के बच्चे अपने माता पिता का सही नाम नही लिख पाते है। देश प्रदेश के किसी मंत्री,विधायक या राज्यपाल का नाम पूछने पर उत्तर देगा की हमे पढाया नही गया। यदि प्रदेश सरकार प्रत्येक जिले कि परीक्षा बोर्ड से कराए। तो प्राथमिक स्कूलों का रिजल्ट शून्य आएगा। जब से स्कूलो मे मिड़ डे मिल योजना लागू हो गई। तब से स्कूलो की शिक्षा भगवान भरोसे चल रही है। इसी लिए आगे चल कर छात्र नकल के भरोसे पास करके परिजनो को धोखा दे रहा है। कौशाम्बी मे हाई स्कूल इंटर बोर्ड परीक्षा नकल विहीन संपन्न कराने मे अधिकारीयों को पसीना-पसीना होना पडता है। यदि प्राथमिक शिक्षा मे सुधार हो जाए। तो अपने आप परीक्षा नकल विहीन संपन्न हो सकती है।