राकेश केसरी
कौशाम्बी। इसे शौक कहा जाए या फिर संक्रामक बीमारियों से बचने की कवायद, जिसे देखिए वह मिनरल वाटर का सेवन कर रहा है। शुद्ध पानी की चाह में घरों में आरओ लगाने वाले लोग बाहर पानी के केन का प्रयोग कर रहे हैं। लोगों का रुझान देख मिनरल वाटर के नए.नए प्लांट लगते जा रहे हैं। लेकिन हर माह लाखों रुपये के इस कारोबार की निगरानी करने वाला कोई नहीं है। बरवक्त जिले में एक दर्जन से अधिक मिनरल वाटर प्लांट संचालित हैं। कारोबार की दृष्टि से प्लांट संचालक अपने डिलेवरी वैन से लगभग पूरे शहर में पानी के कैन की आपूर्ति करते हैं। पूरे माह पानी लेने वालों से 500 से 600 रुपये लिए जाते हैं। इसमें भी जार और केन का रेट अलग होता है। केन में ठंडा पानी रहता है। इससे केन का रेट 25 रुपये और जार का 30 रुपये है। दुकान से लेकर सरकारी कार्यालयों तक में शुद्ध पेयजल के नाम पर पानी की आपूर्ति करने वाली इन कंपनियों के नियम की कोई व्यवस्था जिले में नहीं है। न ही उत्पाद की शुद्धता को कहीं जांच ही होती है। कोई हादसा हो जाए कौन जिम्मेदार होगा इस पर भी कोई अधिकारी मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है।
स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है कोई व्यौरा
मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया कि शहरी क्षेत्र में मिनलर वाटर कंपनियों को लाइसेंस निर्गत करने और देखरेख की जिम्मेदारी जलकल विभाग की है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों यह कार्य फूड विभाग देखता है। इसका स्वास्थ्य विभाग से कोई लेना देना नहीं है। इस बारे में कोई व्यौरा विभाग के पास नहीं है।
कहां से लाइसेंस जारी होता है पता नहीं-ईओ
नगर पालिका मंझनपुर के अधिशासी अधिकारी का कहना है कि मिनरल वाटर कंपनियों से संबंधित कोई व्यौरा नगर पंचायत के पास नहीं है। इन्हें कौन लाइसेंस निर्गत करता है इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। पता लगाने का प्रयास किया गया लेकिन निरर्थक साबित हुआ।

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