राकेश केसरी
सिर्फ गरीबों के ही बच्चें पढ़ रहें प्राथमिक विद्यालयों में
कौशाम्बी। जिले में प्राथमिक व्यवस्था चरमरा गई है। मानो इस पर किसी की नजर लग गयी हो। शासन की तमाम कोशिशों के बावजूद प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पटरी पर नहीं आ रही है। लोगों का प्राथमिक शिक्षा से मोह भंग हो रहा है। प्राथमिक स्कूलो में कोई जागरूक अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला नहीं कराना चाह रहा है। इन कारणों का जिम्मेदारों को मंथन करना होगा तभी सर्व शिक्षा अभियान का नारा सफल होगा। सब पढ़ें-सब बढ़ें की तर्ज पर शिक्षा विभाग सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश तो जरूर कर रहा है लेकिन उचित देखरेख के अभाव में यह नारा फ लीभूत होता नजर नहीं आ रहा है। अलवारा के धीरेंद्र कुमार तिवारी का कहना है कि प्राथमिक स्कूलो में दी जा रही शिक्षा शासन की मंशा के विपरीत है। शासन द्वारा प्रदत्त की जाने वाली सहूलियतों का बंटाधार हो रहा है। शिक्षा के नाम पर खिलवाड़ किया जा रहा है। तैनता शिक्षकों का अधिकतर समय सरकारी कार्यो में व्यतीत होता है। शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिये अधिकारियों को प्रयास करना चाहिए। मंझनपुर के रणविजय का कहना है कि माध्यान्ह भोजन जी का जंजाल बनी हुई है। प्राथमिक शिक्षा को चैपट करने में इस योजना का विशेष हाथ है। बच्चे पूरी दोपहरिया भोजन ताकते रहते हैं। उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है। जिम्मेदारों को चाहिए कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने की पहल करें तभी प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा पटरी पर आ सकती है। गड़रियन का पूरा के कामता पाल का कहना है कि विद्यालयो में मानक के अनुरूप शिक्षकों की तैनाती न होने से प्राथमिक शिक्षा पर विपरीत असर पड़ रहा है। कहीं प्राथमिक स्कूल शिक्षामित्रों के हवाले हैं तो कहीं हेडमास्टर से ही काम चलाया जा रहा है। बेपटरी हुई प्राथमिक शिक्षा को पटरी पर लाने के लिये मानक के सापेक्ष शिक्षकों की तैनाती होनी चाहिए। कोर्रों के आशू तिवारी का कहना है कि प्राथमिक स्कूलों में दी जा रही शिक्षा गुणवत्तापूर्ण नहीं है। शिक्षकों का अभाव प्राथमिक शिक्षा को दीमक की तरह चट कर रहा है। आज स्थिति यह बन गई है कि केवल गरीब तबके के लोग प्राथमिक स्कूलो में अपने बच्चों का दाखिला करा रहे हैं। शेष बच्चे अंग्रेजी स्कूलो में दाखिला ले रहे हैं।

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