राकेश केसरी
भूले नारा,खुद का पानी,खुद निगरानी
कौशाम्बी। खुद का पानी खुद निगरानी, खुशहाल गांव की यही कहानी। इस नारे को लोग भूल गए हैं। हर क्षेत्र में भू.गर्भ जल की बबार्दी हो रही हैं, लेकिन जलसंरक्षण के लिए प्रयास आधे.अधूरे हैं। गांवों में पुराने कुओं और तालाबों की नियमित सफाई व जीर्णोद्धार का कार्य अब नहीं हो रहा। खेतों में मेड़बंदी के जरिए भी वर्षा जल के संरक्षण के प्रयास नहीं हो रहे। सरकारी तौर पर भी जल संरक्षण के लिए चल रही योजनाएं बजट के अभाव में लंबित हैं। भूगर्भ जल के संकट से निपटने के लिए गोष्ठियों के माध्यम से ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह मना लिया जाता है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 97.2 प्रतिशत खारा जल है और मात्र 2.8 प्रतिशत ही मीठा जल है। इसमें भी 0.03 प्रतिशत भू.सतही जल झीलों व नदियों के रूप में और 0.62 प्रतिशत भूजल उपलब्ध है, जिसे नलकूपों व कुओं के माध्यम से प्रयोग में लाया जाता है। अब तो घर.घर में अवैध रुप से समरसेबुल लगाकर पानी का दुरुपयोग किया जा रहा है। रैन वाटर हार्वेिंस्टग के लिए सरकारी स्तर पर अभी तक कोई प्रयास नहीं किए गए। इसमें बड़े सरकारी भवनों पर वर्षा के जल को संरक्षित करने के लिए रैन वाटर हार्वेोस्टग प्लांट लगवाए जाने थे। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 200 वर्ग मीटर वाले भूखंडों में कम से कम एक वर्षा जल संचयन संरचना मुहैया कराया जाना था।

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