राकेश केसरी
कौशाम्बी। यमुना तराई के लोगों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। गहरी बोरिंग वाले ट्यूबवेल भी नहीं लग पा रहे है। यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि बड़ा क्षेत्र असिंचित ही रह जाता है। तराई के लोगों ने मांग किया है कि क्षेत्र के पिछड़ेपन को देखते हुए बुंदेलखंड जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। फतेहपुर जिले के किशनपुर से लेकर औधन तक का क्षेत्र कौशाम्बी में आता है। इस क्षेत्र में रहने वालों की स्थिति खराब होती जा रही है क्योंकि आज भी यहां के खेत असिंचित हैं। गहरी बोरिंग के लिए किसानों ने प्रयास किया तो पता चला कि भूमि के अंदर पत्थर होने के कारण बोरिंग नहीं हो पा रही है। जो छोटी.मोटी बोरिंग हो गई हैं। वे भी ठीक ढंग से नहीं चल पा रही हैं क्योंकि गर्मी के समय में भू.जल स्तर तेजी से गिर जाता है। ऐसे में यहां के किसान चना,बाजरा,जौ आदि की ही खेती कर पाते हैं। जिन लोगों के पास संसाधन हैं। वे तो किसी तरह अपना काम कर लेते हैं लेकिन संसाधन विहीन किसानों के लिए काफी समस्या है। शाहपुर के पूर्व प्रधान प्रदीप सिंह व राजेश सिंह आदि का कहना है कि सरकार ने पहले भी कहा था कि यमुना के गहरे क्षेत्र से पांच किमी तक का क्षेत्र बुंदेलखंड में माना जाए। किसानों का कहना है कि बुंदेलखंड में शासन द्वारा योजनाओं पर नब्बें फीसदी से अधिक छूट दी जा रही हैं। अगर यहां के किसानों को भी बुंदेलखंड जैसी सुविधा मिल जाए तो क्षेत्र का तेजी से विकास होगा। मुबारकपुर के मुन्ना सिंह,बड़हरी के रामबहादुर त्रिपाठी,महेवाघाट के राजेंद्र त्रिपाठी,डेढ़ावल के मिथलेश सिंह,कटरी के रामदत्त द्विवेदी, निगहा के भोला सिंह,देवरी के कमलाकांत पांडेय, भगवतपुर के मलखान सिंह आदि का कहना है कि अगर इस क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे तराई संघर्ष मोर्चा बनाकर आंदोलन छेड़ेंगे।