राकेश केशरी
कौशाम्बी। सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद ग्रामीण इलाकों में अभी भी शौचालय का उपयोग नहीं हो रहा है। इसे सरकारी तंत्र की नाकामी कहें या कि लाचारी या ग्रामीणों की नियति। लाखों रुपया शौचालय निर्माण और जागरूकता कार्यक्रम में खर्च करने के बाद भी शौचालय की व्यवस्था मूर्तरूप नहीं ले सकी है। ग्रामीणों को जागरूक करने के सरकारी दावा भी महज दिखावा ही साबित हो रहा है। एक तरफ शौचालय के लिए आया सरकारी धन जहां बदइंतजामी की भेंट चढ़ गया है। वहीं ग्रामीणों में भी इस महत्वपूर्ण योजना को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखायी दे रहा है। सिराथू तहसील क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गांवों में निवास करने वाले ग्रामीणों का न तो खेत की पगडंडी छूटी और न ही हाथ से डिब्बा व लोटा। जबकि यदि विभागीय आंकडों की मानें तो शौचालय निर्माण व जागरूकता कार्यक्रम में लाखों रुपये खर्च कर दिया गया है, फिर भी शौचालय की परंपरा अस्तित्व में नहीं आ रही है। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होना दिखाया जाता है जिसमें एक हिस्सा तो जागरूकता के नाम पर रहता है, जो कागजी आंकड़ेबाजी की भेंट चढ़ गया है। गांवों में बने सरकारी शौचालयों में व्यापक अनियमितता बरती गई है। कहीं दरवाजे नहीं हैं तो कही छत नहीं, तो कहीं सीट नहीं है। तमाम गांव ऐसे हैं जहां सिर्फ कागजों पर ही शौचालय का निर्माण कराया गया है। सरकारी अमले द्वारा योजना में हेरफेर किये जाने से अधिकतर ग्रामीण इस योजना से वंचित हैं। जिससे सरकारी मंशा तार-तार हो रही है। इस संबंध में डीपीआरओ बाल गोबिन्द श्रीवास्तव ने बताया कि समय समय पर जागरूकता कार्यक्रम चलाकर ग्रामीणों को जागरूक किया जाता है। अधूरे पड़े शौचालयों को वित्तीय वर्ष के अंदर ही पूरा करा लिया जाएगा। जिस भी गांव में अनियमितता मिलेगी या शिकायत मिलेगी जांचकर दोषियों के विरुद्ध की जाएगी।