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एकता और सद्भाव के सिद्धांत से मौलाना आजाद को एक इंच भी हटना पसंद नहीं था : प्रो.शर्मा

Friday, November 11, 2022

/ by Today Warta



इन्द्रपाल सिंह प्रिइन्द्र

ललितपुर। महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि 11 नवंबर 1888 में पवित्र नगर मक्का में जन्मे मौलाना आजाद के पिता अरबी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनकी माँ नगर मदीना के मुफ्ती की पुत्री थी। उनका परिवार 1907 में भारत आकर कलकत्ता में बस गया। मौलाना आजाद स्वाधीनता संघर्ष के एक ऐसे नायक थे, जिन्हें 1923 में अल्पायु में इण्डियन नेशनल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। उनके नेतृत्व के महान गुणों में एक यह भी गुण था कि ख्याति खो देने के भय से, उन्होंने कभी भी अपने विचार व्यक्त करने से संकोच नहीं किया। एक आदर्श नेता को अडिग और निर्भीक होना ही चाहिए। क्योंकि जो मनुष्य अपने विचारों के लिए, अलोकप्रियता का जोखिम नहीं उठा सकता वह सच्चा नेता नहीं बन सकता। जो सबको खुश करने की चालाकी चलता है, वह किसी को खुश नहीं कर सकता। मौलाना आजाद ने न केवल राजनीतिक गुलामी के लिए जिम्मेदार कारणों को गहराई से जाना और समझा अपितु आर्थिक विषमता तथा सामाजिक अन्याय जैसी गुलामी के कारणों को हटाने के लिए आजाद भारत में विभाजनकारी शक्तियों एवं दुर्भावनापूर्ण कुचालों से अपनी अंतिम साँस तक संघर्ष किया। राष्ट्रीय एकता और पारस्परिक सहन शीलता उनके जीवन की संचालक शक्ति थी। व्यक्तिगत मामलों में करुणा और सार्वजनिक मामलों में न्याय उनका प्रिय सिद्धांत था। संविधान सभा में उन्होंने हिंदी को ही राष्ट्रभाषा स्वीकारा था। उनका उर्दू गद्य आधुनिक युग का टकसाली गद्य माना जाता है। राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने में उनके उर्दू अखबार अलहिलाल ने वैसा ही योगदान दिया, जैसा उत्तर भारत में राष्ट्रकवि गुप्त जी की भारत भारती ने। मौलाना आजाद भारत की एकता और सद्भाव के अग्रदूत है, इतिहास में और कृतज्ञ देशवासियों के हृदयों में वे सदा जीवित रहेगें।

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