रावेंद्र शुक्ला
प्रयागराज बारा।शादी-समारोहों में आजकल वर-कन्या के द्वारा सामाजिक प्रतिष्ठा को दरकिनार करते हुए फ़ूहड़ तरीके अपनाए जाने लगे हैं।उदाहरण के लिए-शादी के स्टेज पर ही सब के सामने वर-कन्या एक दूसरे को किस करते हुए देखे जाते हैं। कभी कभी नवयौवना दुल्हन दूल्हे के इस कृत्य से नाराज हो जाती है और शादी-सम्बंध विच्छेद हो जाते हैं।बारातियों और घरातियों में भी तू-तू-मैं-मैं शुरू हो जाती है। मनुष्य और पशुओं में यही अन्तर है। किस या ऐसा कुछ भी कृत्य सार्वजनिक नहीं होते, बल्कि ये पति-पत्नी के नितांत निजी क्षण हैं।इन्हें किसी के मनोरंजन के लिए या दोस्तों से शर्त आदि लगाकर यह कुकृत्य करना पशुता कही जा सकती है। अहंकार से भरकर दुल्हन के मान-सम्मान को पैरों की जूती समझने वाले लोगों को अपने ख़ानदानी परंपरागत रवैये को नहीं भूलना चाहिए। जिस रिश्ते में पारस्परिक सम्मान न हो, उसकी वैधता क्षणिक ही होती है। वास्तव में छद्म नारीवाद और वास्तविक नारी-शक्ति में यही अंतर है।वैवाहिक समारोहों में कुछ छिछोरे एवं घटिया लोगों द्वारा अपमानित करने का काम किया जाता है।जैसे जब लड़की वरमाला डाल रही होती है तो लड़के को ऊपर उठा लेना, पैसे का अनावश्यक दिखावा करना, डीजे पर घटिया गाने बजना,संसाधनों की बर्बादी आदि बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिन्हें बाजार की शक्ति ने इन पवित्र आयोजनों का हिस्सा बनाया गया।जैसे शादी-समारोहों में बिना मदिरापान किये डांस न करना या यूँ कह लीजिए कि कुछ बारातों में तो वर-कन्या व बारातियों सहित दोनों पक्षों के लोग मदिरापान में मस्त दिखाई देते हैं। पूरी तरह से आज के परिवेश में पाश्चात्य बाजारू संस्कृति हमारे वैदिक संस्कृति पर भारी पड़ती जा रही है।हम सभी को संयमित होकर इससे सतर्कता बरतने की आवश्यकता होगी। पाश्चात्य संस्कृति को रोकने में एक दूसरे का सहयोग करने की भी आवश्यकता होगी।

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