राकेश केसरी
कौशाम्बी। मां शीतला कड़ाधाम धार्मिकता व ऐतिहासिकता की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। इतिहास के पन्ने भी इसके गवाह हैं। ख्वाजा कड़क शाह बाबा की दरगाह, मां कड़े वासिनी, जैनियों की काड़ीबाग व संत मलूकदास की समाधि कुछ बेशकीमती नगीने हैं जिनको देखने को देश-विदेश से लोगों का आना-जाना रोज रहता है। सैलानियों से गुलजार रहने वाला ऐतिहासिक स्थल सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल भी पेश करता है। कड़ा के इतिहास पर निगाह डालें तो खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी की यह कर्मभूमि रही है। उस दौर में कड़ा एक समृद्धिशाली सूबे के रुप में जाना जाता था। इसी वंश के शासक जलालउद्दीन खिलजी ने अपने भतीजे की वीरता व साहस के दम पर आसपास के तमाम राज्यों को जीत लिया था। इतिहास इस बात का गवाह है कि अलाउद्दीन अपने भतीजे से मिलने गंगा नदी से नाव द्वारा कड़ा आया था। भतीजे ने चाचा के स्वागत का इंतजाम गोविंदपुर गंगा घाट पर कर रखा था जहां पर गले मिलने के बहाने भतीजे ने चाचा की हत्या कर दी और दिल्ली का शासक बन बैठा। जयचंद का किला भी यहीं है। इतिहास के मुताबिक जयचंद का पतन उजबेकिस्तान के आक्रमणकारी सैयद सालार मसूद गाजी के आक्रमण से हुआ जो बाद में गाजी मियां के नाम से प्रसिद्ध हुए। कड़ा के पास ही स्थित ग्राम दारानगर को मुगल शहजादा दाराशिकोह ने बसाया था। अपने भाई औरंगजेब के कहर से बचने के लिए दाराशिकोह यहां काफी दिनों तक छिपा रहा। हजारों वर्षो से हिंदु, मुस्लिम व जैनियों की श्रद्धा व आस्था का केंद्र बिंदु कड़ा सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करता है। यहां पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं। स्थानीय लोगो ने कड़ा को पर्यटन स्थल बनाने की मांग तेज कर दिया। इसी क्रम में पण्ड़ा समाज के लोगो ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिलकर मांग पत्र देने का मन बनाया है।