इन्द्रपाल सिंह'प्रिइन्द्र
ललितपुर। शहर घंटाघर सरकारी इमारत न होकर जनता द्वारा निर्मित कराये गये स्वतंत्रताप्रेमियों के संयुक्त प्रयास से निर्मित देशभक्तों की कीर्ति का प्रेरणादायी स्मारक है। तन मन धन के संयुक्त प्रयास का ही परिणाम है कि इसके शिखर पर महान सम्राट अशोक के सारनाथ संग्रहालय वाराणसी में संरक्षित स्तम्भ की अनुकृति के अनुरूप भारत के संविधान के प्रमुख प्रतीक चिन्ह 4 शेरों को स्थानीय वास्तुविद स्व. श्यामलाल राठौर एवं उनके पिताश्री ने बड़े कलात्मक ढंग से निर्मित किया। इसका निर्माण 15 अगस्त 1947 के स्वाधीनता समारोह एवं 26 जनवरी 1950 के गणतंत्र की मध्यावधि में ही हुआ है । जनता में स्वभावत: उत्साह व उमंग का समुद्र हिलोरें ले रहा था तभी स्वत: स्फूर्त चेतना को साकार रूप देने के लिए समाजसेवी स्व.सेठ शिवप्रसाद अग्रवाल, स्व.रायसाहब रामदास, तदयुगीन पालिका अध्यक्ष स्व. पं बृजनंदन किलेदार, स्वतंत्रता सेनानी स्व.पं रामदास दुबे, स्व.अभिनंदनकुमार टडैय़ा, स्व.डॉ शादीलाल दुबे, स्वतंत्रता सेनानी स्व.पं बृजनंदन शर्मा, स्व.जिनेश्वरदास टड़ैया, स्व.पं रामनारायण शर्मा, स्व.पं परशुराम चौबे, पं परशुराम शुक्ल विरही, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.रमानाथ खैरा एड., आर डी गुप्ता, स्वतंत्रता सेनानी अहमद पहलवान, स्वतंत्रता सेनानी स्व. तन्मय बुखारिया, स्वतंत्रता सेनानी स्व बाबूलाल निगम, स्व.पं परमानन्द रावत, वरिष्ठ अधिवक्ता पं लक्ष्मीनारायण तिवारी, स्व. हरिप्रसाद हरि, स्वतंत्रता सेनानी स्व मर्दन चौधरी आदि आदि का सहयोग सदा स्मरणीय रहेगा। तत्कालीन पालिकाध्यक्ष स्व.डॉ शादीलाल दुबे, स्व. पं हरिहरनारायण चौबे जब पालिका पार्षद थे तब महान समाजवादी विचारक डॉ राममनोहर लोहिया ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की आदमकद प्रतिमा का उद्धाटन किया और उनकी वाणी सम्मानपूर्वक घंटाघर पर अंकित की गई। जो घडय़िां लगायी गईं वे हिन्दी अंकों में थीं। डॉ लोहियाजी ने मुक्तकंठ से प्रशन्सा की। अमरशहीद चन्द्रशेखर आजाद के सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी स्व.पं नन्दकिशोर किलेदार ने चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा का उद्घाटन पूर्व सांसद और तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ सुशीला नैयर की अध्यक्षता में किया। वस्तुत: शान्तिमूर्ति गाँधीजी और क्रान्तिमूर्ति चन्द्रशेखर आजाद की संयुक्त याद और प्रेरणा का देश का इकलौता स्मारक है जिसमें ललितपुर के समस्त स्वतंत्रता सेनानियों के नामों की पट्टिका सुशोभित है। भारत सरकार द्वारा अशोक स्तम्भ के चारों शेरों को संविधान में इतना महत्व इसलिए दिया गया है कि भगवान बुद्ध यह संदेश दे रहे हैं कि गौर से किसी भी दिशा में देखने पर सिर्फ तीन ही शेर दिखाई देते हैं। महात्मा गाँधीजी समेत पूरी संविधान सभा को भगवान बुद्ध का यह प्रतीक बहुत अच्छा लगा, क्योंकि चेतनाविहीन 4 शेर संगठित होकर जब 3 ही दिखाई देते हैं तो प्रबुद्ध मानव संगठित होकर आसानी से दुनिया का कायाकल्प कर सकता है। इसी प्रकार राष्ट्र ध्वज तिरंगे के मध्य में जो चक्र है वह भी सारनाथ में जब भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया तो वह धर्मचक्र प्रवर्तन कहलाया। जिसका आशय है कि प्रगति का चक्र सदैव आगे से भी आगे रहे, पीछे मुड़कर न देखे। वस्तुत: हमारे घंटाघर की यह इमारत यशस्वी देशप्रेमी पूर्वजों की शानदार विरासत है जिसमें आधारभूत नागरिक समिति एवं पूर्वपालिका चेयरमैन और पार्षदों का सराहनीय योगदान है।