राजीव कुमार जैन रानू
ललितपुर। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी श्रीगुरु सिंह सभा के तत्वाधान में आज बाबा दीप सिंह जी का जन्मदिवस गुरुद्वारा साहिब लक्ष्मीपुरा में बड़ा ही धूमधाम के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सुबह स्त्री साध संगत द्वारा श्रीसुखमणि साहिब के पाठ किए गए। उपरांत श्रीसहज पाठ साहिबजी की समाप्ति सरदार सतवंत सिंह भोगल व गुरु प्रेमी परिवार की ओर से हुई उपरांत चाय नाश्ते के लंगर की सेवा भी गुरु प्रेमी परिवार की ओर से हुई। इस अवसर पर मुख्य ग्रंथी ज्ञानी हरविंदर सिंह ने कहा कि बाबा दीप सिंह का जन्म श्रीअमृतसर के पहुविंड नामक गांव में पिता भगताजी और माता जीऊणीजी के घर सन् 1682 ई. में हुआ था। बाबा जी बचपन में ही दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की सेवा में श्री आनंदपुर साहिब आ गए थे। बाबा जी ने दशमेश पिता के हाथों से अमृत पान किया और उन्हीं से शस्त्र संचालन एवं गुरबाणी-अध्ययन की शिक्षा प्राप्त की। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा ने कहा कि बाबा जी की रुचियां आध्यात्मिक थीं और आप सदैव नाम-सिमरन तथा गुरबाणी पठन में रत रहते। आप अत्यंत सुडौल एवं दृढ़ शरीर वाले योद्धा भी थे। आपने दशमेश पिता द्वारा लड़े गए सभी युद्धों में भाग लिया और खूब पराक्रम दिखाया दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी इनकी विद्वता से भी बहुत प्रभावित थे। जब गुरु जी ने श्री गुरु साहिब का भावार्थ किया था तो उसे सबसे पहले सुनने वाले 47 सिखों में ये भी एक थे।धीर मलिकों ने जब श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ देने से इंकार कर दिया तो दशमेश पिता ने इन्हें भाई मनी सिंह जी के साथ मिलकर तलवंडी साबो में रहकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ तैयार करने का आदेश दिया। यहां बाबा दीप सिंह जी ने कई हस्तलिखित बीड़ें (श्री गुरु ग्रंथ साहिब) तैयार कीं जो बाद में चार तख्त साहिबान पर भेजी गईं। कोषाध्यक्ष परमजीत सिंह छतवाल ने कहा कि बाबा जी तलवंडी साबो में रहते हुए गुरबाणी पठन-पाठन और अध्ययन करवाने की सेवा भी करते रहे। इस प्रकार यहां गुरबाणी के अर्थ करने की एक टकसाल आरंभ हुई जो कालांतर में दमदमी टकसाल कहलाई।योद्धा के रूप में : जब बाबा बंदा सिंह बहादुर पंजाब आए तब बाबा दीप सिंह जी उनके साथ हो लिए और अनेक युद्धों में शामिल होकर अपनी वीरता के जौहर दिखाए।बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बाद आप फिर तलवंडी साबो लौट आए और गुरबाणी-अध्ययन व पठन-पाठन में जुट गए वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा ने कहा कि श्री हरिमंदर साहिब की रक्षा में बलिदान सन् 1757 ई. में अहमद शाह अब्दाली ने नगर श्री अमृतसर पर कब्जा कर श्री हरिमंदर साहिब को ढहा दिया और अमृत सरोवर को मिट्टी से भर दिया। यह खबर मिलते ही बाबा जी का खून खौल उठा। 75 वर्ष की वृद्धावस्था होने के बावजूद आपने खंडा उठा लिया। तलवंडी साबो से चलते समय बाबा जी के साथ सिर्फ आठ सिख थे, परंतु रास्ते में और सिखों के आकर मिलते रहने से श्री तरनतारन तक पहुंचते-पहुंचते सिखों की संख्या पांच हजार तक पहुंच गई। श्री तरनतारन से दस किलोमीटर दूर गोहलवड़ गांव के निकट सिखों और अफगान सिपहसालार जहान खान के लश्कर में जबरदस्त जंग शुरू हो गई। श्री हरिमंदर साहिब की बेअदबी से क्रोधित सिखों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए।अफगानों को गाजर-मूली की तरह काटते हुए बाबा दीप सिंह जी आगे बढ़ रहे थे कि तभी एक घातक वार बाबा जी की गर्दन पर पड़ा। बाबा जी की गर्दन कट गई और वह युद्ध भूमि में गिर पड़े। यह देख कर एक सिख पुकार उठा प्रण तुम्हारा दीप सिंघ रहयो। गुरुपुर जाए सीस मै देहऊ। मे ते दोए कोस इस ठै हऊअर्थात बाबा दीप सिंह जी, आपका प्रण तो गुरु नगरी में जाकर शीश देने का था पर वह तो अभी दो कोस दूर है।यह सुनते ही बाबा दीप सिंह जी फिर उठ खड़े हुए। दाहिने हाथ में खंडा लिया, बाएं हाथ से शीश संभाला और पुन: युद्ध आरंभ कर दिया। बाबा जी युद्ध करते-करते गुरु की नगरी तक जा पहुंचे। बाबा जी के साथ-साथ अनेक सिख शहीद हो गए, परंतु श्री हरिमंदर साहिब की बेअदबी का बदला ले लिया गया।बाबा दीप सिंह जी का अंतिम संस्कार श्री अमृतसर नगर में चाटीविंड दरवाजे के पास गुरुद्वारा रामसर साहिब के निकट किया गया। आज इस पवित्र स्थान पर गुरुद्वारा श्री शहीदगंज साहिब सुशोभित है। बाबा जी ने श्री हरिमंदर साहिब की परिक्रमा में जहां शीश भेंट किया था, वहां भी गुरुद्वारा साहिब निर्मित है। बाबा जी का खंडा श्री अकाल तख्त साहिब में सुशोभित है इस अवसर पर अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा, कोषाध्यक्ष परमजीत सिंह छतवाल, सूचना अधिकारी सुरजीत सिंह, पर्सन सिंह परमार, मनजीत सिंह एडवोकेट, गुरबचन सिंह सलूजा, गुरमुख सिंह, अरविंदर सिंह सागरी, तेजवंत सिंह, जगजीत सिंह, अमरजीत सिंह, आनंद सिंह, मजबूत सिंह, सतनाम सिंह भाटिया, राजू अमृतसरिया, मनजीत सिंह, स्त्री साध संगत की अध्यक्षा बिंदु कालरा, गुरदीप कौर, अमरजीत कौर, मनजीत कौर, गोल्डी कौर, कंचन कौर, रोजी अरोरा,जसप्रीत कोर, गोपी डोंडवानी, नीटू कालरा,सतीश अरोरा, आदि उपस्थित थे संचालन महामंत्री सुरजीत सिंह सलूजा ने किया आभार संरक्षक जितेंद्र सिंह सलूजा ने व्यक्त किया।