राकेश केशरी
कौशाम्बी। राजस्व विभाग की ओर से नियमित फसलों की पड़ताल कराई जाती है। पड़ताल के आधार पर खसरा में फसल दर्ज की जाती हैं, लेकिन लेखपालों की ओर से घर बैठे ही पड़ताल कर ली जाती है, जिससे वास्तविक स्थिति अभिलेखों में नहीं दर्ज हो पाती है, लिहाजा किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। रबी व खरीफ फसलों के मौसम में क्षेत्रीय लेखपाल को खेत में लगी फसलों का खसरा अभिलेख में दर्ज करना होता है। इस दौरान किसानों के खेतों में बोरिंग, मकान, बाग आदि का विवरण भी अभिलेखों में दर्ज किया जाता है, किन्तु मनमानी पड़ताल के चलते तहसील के अभिलेखों में खेतों की फसलों की सही स्थिति नहीं दर्ज हो पाती है। जिससे किसान जब बैंक में कर्ज लेने जाते हैं तो खसरा में दर्ज फसल के दर से उनकी भूमि का मूल्यांकन होता है। साथ-साथ बोरिंग दर्ज न होने से उनका सम्पूर्ण क्षेत्रफल असिंचित मान लिया जाता है, जबकि मौके पर किसान की ओर से अपने खेत में आलू, प्याज, मेंथा, गन्ना जैसी व्यावसायिक खेती भी करते हैं। ऐसे में उन्हें कर्ज लेने में भी दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। जब किसान खसरे में फसल परिवर्तन कराने के लिए लेखपाल के पास जाते हैं तो उन्हें सुविधा शुल्क के लिए मजबूर होना पड़ता है। जबकि शासन का निर्देश है कि राजस्व कर्मी मौके पर लगी फसल खेत बोरिंग मकान तथा गांवों में मृतकों के वारिसान के नाम उनकी पैतृक भूमि समय अभिलेखों में दर्ज की जाए।