राकेश केशरी
कौशाम्बी। पान के बीड़े में गुलकंद की महक या फिर दुल्हन की डोली पर लटकी गेंदे के फूलों की लडियां। इन फूलों का इस्तेमाल सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। अगर किसान चाहे तो फूलों की खेती को परम्परागत खेती के रुप में इस्तेमाल कर अपनी दशा व खेतों की रौनक बदल सकते हैं। वर्तमान में फूलों की बढ़ती डिमांड भी यही संकेत दे रही है जिले के लोग अभी तक परम्परागत खेती में उलझे हुए हैं। धान, गेहूं ,गन्ना व थोड़ी दलहनी फसलें। यहां से आगे किसानों की सोच नहीं बढ़ पा रही है। नतीजतन फसलों के उचित दाम के लिए किसान जूझते रहते हैं। इस स्थिति से उबरने के लिए उन्हें खेतीबाड़ी में भी बदलाव करने की जरूरत है। वर्तमान में जिस तेजी के साथ फूलों की डिमांड बढ़ रही है, उससे तो लगता है कि आने वाले समय में फूलों की खेती बड़ा व्यवसाय बनकर उभरेगी। जिले के किसानों के लिए भी यह बेहद फायदे का सौदा साबित हो सकती है क्योंकि यहां की मिंट्टी फूलों की खेती के अनुकूल है। इस बारे में कृषि वैज्ञानिक डा0 मनोज कुमार सिंह बताते हैं कि वर्तमान में जिले में मामूली तौर पर गुलाब व गेंदे की खेती की जा रही है जबकि डिमांड बढ़ती जा रही है। इसके चलते दूसरे जनपदों से फूल मंगवाने पड़ते हैं। अगर किसान गुलाब व गेंदे की खेती करें तो वह अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। उन्होंने बताया कि गेंदे व गुलाब की खेती सालभर चलती है। गेंदा तो रोपाई के बाद एक बार ही फूल देता है, लेकिन गुलाब की खेती पांच साल तक लगातार फूल देती है। उन्होने बताया कि गेंदा की जरुरत शादी-ब्याह व दूसरे मौकों पर पड़ती है। जबकि गुलाब का इत्र तैयार करने के लिए इसका प्लांट भी लगाया जा सकता है। किसान गुलकंद भी तैयार कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि गेंदा और गुलाब की खेती करने के लिए लागत भी बेहद मामूली है। गुलाब की एक एकड़ खेती में चालिस हजार रुपये का खर्च आता है । उसके बाद पांच साल तक सिर्फ उसकी देखभाल की जरुरत है। गुलाब की खेती से किसान एक साल में एक लाख रुपये का मुनाफा कमा सकता है।