राकेश केशरी
कौशाम्बी। शादी विवाह के मौके हों अथवा कोई और मांगलिक कार्यक्रम। कभी इस दौरान शहनाई की मीठी धुन सुनने को मिलती थी लेकिन समय के साथ उसकी आवाज भी अब गुम होती जा रही है। किसी के घर शादी हो तो शहनाई और बच्चे ने जन्म लिया हो तो शहनाई बजती थी। मन्नत पूरी होने पर भी देव स्थान पर शहनाई के साथ लोग जाते थे,लेकिन वह परंपरा अब धीरे-धीरे गुम होती जा रही है। बैंड और कानफाड़ू डीजे ने उसकी जगह ले लिया है। डीजे और बैंड की तेज आवाज कमजोर दिल वालों पर भारी भी पड़ती है लेकिन इससे बचने का कोई रास्ता नहीं। बारात के दौरान अगर कोई शौकीन परिवार शहनाई बुक भी कर लिया तो नौजवानों के नाते बैंड और डीजे भी बुक किया जाता है। बारात के दौरान युवाओं का नृत्य भी बैंड और डीजे की धुन पर ही होने लगा है। एक जमाना था कि शहनाई पार्टी से लोग गीतों के धुन की फरमाइश करते थे और वह धुन बजाने पर शहनाई मास्टर को न्योछावर देते थे लेकिन अब जब उनसे फरमाइश ही नहीं हो रही तो न्योछावर की बात ही दूर है। दूसरी ओर जहां आधी रात के बाद तक डीजे पर नृत्य कर लोग जश्न मनाते हैं। इससे उसके आसपास रहने वालों पर क्या गुजरती है, इसे सहज ही समझा जा सकता है।