राकेश केशरी
कौशाम्बी। अब बारात हो या वारदात नहीं खुलती हैं खिड़कियां किसी शायर का यह शेर आजकल सटीक बैठ रहा है। अपराधियों का आतंक इस कदर है कि अब लोग घर के भीतर भी खुद को महफूज मानने से कतरा जाते हैं। जघन्य अपराध भी अब पुलिस के लिए मामूली सी घटना है। कार्रवाई तो दूर रपट लिखने को भी जहमत नहीं उठाती है। पदार्फाश, गिरफ्तारी और विवेचना इतने बड़े गतिरोध हैं कि आम आदमी कांपता है और व्यवस्था उपहास उड़ाती है। जिले में एक के बाद एक ताबड़तोड़ हो रही हत्याओं ने यहां पुलिस के अपराधों पर अंकुश के दावों की धज्जियां उड़ा दी हैं। वहीं हर चेहरे पर चिंता और तनाव की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं। सरे राह चलते कब किधर गोली चल जाये और जान निकल जाए, कब बदमाश लूट लें, कब चेन स्नेचर महिलाओं के गले से चेन नोच लें, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब हर आदमी कहने लगा कि कानून व्यवस्था की स्थिति काफी दयनीय है। कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को लेकर उमडने घुमडने वाले इन सवालों का जवाब तो पुलिस के पास नहीं है। पहले कभी कभार कोई बड़ी वारदात होती थी तो अपराधी शीघ्र पकड़ जाते थे। लेकिन अब अपराधियों को गिरफ्तार करना तो दूर पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने से कतराती है। जोर दबाव में रिपोर्ट लिख भी जाए तो वर्क आउट की मत सोचिए। दबंग और शातिर अपराधी धन-बल के चलते पुलिस की गिरफ्त में ही नहीं आते।