संजय धर द्विवेदी
लालापुर प्रयागराज
राजा के दर्शन के लिए सुबह से ही लगने लगती है भीड़।
लालापुर । यूं तो तरहार क्षेत्र में होली का त्यौहार 3 दिन बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन कुछ ग्रामीण अंचलों में प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है ।लेकिन युवा पीढ़ी के लोग इन परंपराओं से दूर होते दिखाई दे रहे हैं । शंकरगढ़ के कपारी गांव में होली के त्यौहार के दिन राजा के दर्शन करने की खास परंपरा है। बताते हैं कि पहले राजा शंकरगढ़ पैदल ही लालापुर, अमिलिया कपाली ,लकहर ,लाला पुरवा ,सेन नगर आदि जगहों पर पैदल जाया करते थे और लोग दर्शन करते थे ।लेकिन अब अवस्था के अनुसार वे अपने शंकरगढ़ कोठी में ही बैठे रहते हैं जहां सुबह से ही लोग उनका दर्शन करते हैं । ग्रामीणों ने बताया कि कपारी गांव में गांव के बाहर प्राचीन स्थल पर माघ मास की पूर्णिमा को चौकीदार द्वारा होलिका और प्रहलाद का प्रतीक होलिका होलिका की दो झंडी गाड़ी जाती है। उसी पर ग्रामीणों द्वारा एक महीने खर पतवार आदि डाला जाता है। फाल्गुल पूर्णिमा के दिन चौकीदार फिर बुलौवा देता है । उसके बाद महिलाएं लोटे और मटके में एक खास तरह का जल तैयार करती हैं और पूरे घर के सदस्यों के ऊपर उतारती हैं जिसे धार कहा जाता है। घर के बड़े उस धार को लेकर चौकीदार के साथ पूरे गांव का भ्रमण करते हुए उसी जल से पूरे गांव को बांधते हैं ।मान्यता है कि ऐसे में साल भर विपत्तियों से रक्षा होती है। इसके बाद डग्गाफ गुआ गाते हुए सभी ग्रामीण एक खास जगह पर पहुंचते हैं जहां पर देवी के नाम पर बलि दी जाती है। उसके बाद पास में स्थित मंदिर में जयकारों के साथ मसूरिया देवी की पूजा की जाती है । लग्न मुहूर्त देखकर लोग होलिका दहन करते हैं और उसी होलिका में राई नमक उतारकर फेंकते हैं तथा जौ गेहूं चना आदि फसलों को भूनकर साल भर से घर में खोंस कर रखते है। बताते हैं कि आषाढ़ या चैत्र में सांप देखने के बाद इसी भुनी हुई फसल को देखने से दोष दूर हो जाता है। होलिका दहन के बाद फगुआ गाते हुए लोग घर आते हैं । अगले दिन पूरे गांव के बूढ़े बच्चे मिलकर होलिका दहन स्थल पर जाते हैं और वहां की राख लेकर माथे पर लगाते हैं एक दूसरे से गले मिलते हैं। तथा उस रात को अपने आंगन की तुलसी के पौधे के नीचे रख देते हैं बताते हैं । फिर अगले तीन दिनों तक घरों में विभिन्न पकवान, रंग गुलाल ,व भांग के साथ धूमधाम से होली मनाई जाती है। कपारी में सपेरों की संख्या भी लगभग 800 से ऊपर है ऐसे में नाग देवता की पूजा करके उन्हें घर घर दिखाने की भी एक खास परंपरा है जिसे लोग वर्षों से मनाते चले आ रहे हैं। लेकिन नई पीढ़ी इन परंपराओं के प्रति रुचि कम होती जा रही है।