राजीव कुमार जैन रानू
ललितपुर। भारतीय पत्रकारिता के चमकते सूर्य गणेशशंकर विद्यार्थी के बलिदान दिवस पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करचे हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि महान साहित्यसृष्टा तथा हिन्दी पत्रकारिता के तपते सूर्य गणेश शंकर विद्यार्थी के शब्द गुलामी के गाल पर झन्नाटेदार तमाचे की तरह पड़ते थे। विरासत में तिलक और गांधी से मिली अन्याय और असत्य के विरुद्ध आग बरसाने वाली पत्रकारिता की मसाल लेकर चलने वाले विद्यार्थी जी की जोशीली ललकार सर्वत्र दिखाई देती है। यहाँ तक कि अपने प्रताप अखबार में सह संपादक की नौकरी चाहने वालों के लिए अपने रिक्ति विज्ञापन का प्रारूप भी वे इस तरह छापते हैं। दो वक्त का भोजन। साल के दो कुर्तें। दो धोतियां तथा सदा एक पैर जेल में रहने की स्थिति जिसे मंजूर हो, आवेदन करे। उक्त विज्ञापन को पढ कर सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद नेअपनी दरख्वास्त लगाई और सहर्ष उनका चयन कर लिया गया। अखबार का दफ्तर क्रान्तिकारियों के लिए भारत माता मंदिर तीर्थ बन गया। विद्यार्थीजी की शहादत पर स्वाधीनता संग्राम के महानायक गांधीजी ने कहा था, ऐसा सौभाग्य मैं चाहता हूँ। मुझे इस बहादुर सपूत से इसीलिए ईर्ष्या हो रही है। समाचार पत्र का लक्ष्य अन्याय के साम्राज्य से छुटकारा दिलाना है। प्रत्येक मनुष्य जो लाचारी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है, उसे तोड़ फेकनें की झनझनाहट अखबारों के स्तम्भों के शब्दों से सुनाई देती रहना चाहिए। आज अखबारों की स्याही और इलेक्ट्रानिक मीडिया के बिजली से आलोकित अक्षरों के कारण मीडिया का चौथा खम्भा इतना शक्तिशाली हे चुका है कि यदि जनमत को अन्य तीन खम्भे किंचित झपकी भरते नजर आ भी जायें तो उन्हें पल भर में जगाते देर नहीं लगती। संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए विद्यार्थीजी का प्रदेय धु्रवतारे की तरह सघन अंधकार के मध्य अपना ऐसा आलोक बिखेर रहा है कि अनौचित्य के बादल सत्य के सूर्य को और ज्यादा देर तक ढके नहीं रह सकते। इलाहाबाद में सरस्वती और अभ्युदय के कार्यालय में बैठकर या कानपुर में प्रताप अखबार के लिए, उनकी कलम से जो शब्द फूल की तरह झरे या अंगारे बनकर बरसे, वे कभी निर्जीव नहीं रह सकते हैं। भारत शब्दों को ब्रह्म मानता है। साहित्य निर्माता होने के नाते उनके शब्द ब्रह्म जैसी व्यापकता और गहराई के कारण पत्रकारिता विज्ञान के लिए सदा सार्व-देशिक रहेंगे। रूसी क्रान्तिदर्शी कवि माया को वस्कीं का यह कथन विद्यार्थी जी पर एकदम सटीक बैठता है कि किसी कलमकार की ताकत इसलिए मत आंको कि भविष्य में लोग, हिचकियों के साथ उसे याद करते हैं, नहीं, आज भी उसका एक शब्द, एक आलिंगन है, और एक नारा, और एक संगीन, और एक कोड़ा।