राकेश केशरी
कौशाम्बी। बंदर,भालू का नाच दिखाकर गांवों,चैराहों पर लोगों का मनोरंजन करने वाले आज दाने दाने के मोहताज हैं। डमरु बजा कर परिवार का भरण पोषण करने वाले लाचारी का जीवन जीने को मजबूर हैं। मूलभूत सुविधाये मुहैया कराकर जहां विभिन्न योजनाएं संचालित कर शासन जीवन स्तर में बदलाव ला रहा है,वहीं वर्षो से डमरु बजाने के पेशे से जुड़े कौशाम्बी के दर्जन गांवों में गुजर-बसर करनें वालें परिवारों को शिक्षा,चिकित्सा,आवास,शुद्ध पेय जल की सुविधाएं अब तक नसीब नहीं हो पायी। डमरु बजाकर भालू,बंदरों का नाच दिखाकर मिले पैसों से उनकी पीढिया गुजर बसर करती आ रही हैं। शासन के प्रतिबंधों से आहत पिछले दस वर्षो से पेशे से जुड़े हाथ बेरोजगार हो गए हैं। कड़ा एंव कौशाम्बी ब्लाक के लगभग एक दर्जन लोगो का पुश्तैनी धंधा डमरु बजाकर भालू व बंदर का नाच दिखाना था। पुश्तैनी धंधा खत्म होने से इन परिवारों के समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। उक्त गांवों के ग्रामीणों के पास पर्याप्त खेती भी नहीं है,जिससे परिवार का भरण पोषण हो सके। डमरु बजाने के धंधे से परिवार का भरण पोषण किसी तरह हो जाया करता था और वे इसी में खुशहाल थे। वन्य जीवों पर प्रतिबंधों के चलते डमरु बजाने का धंधा अगली पीढ़ी में पहुंचने से पहले खत्म हो गया। आर्थिक रुप से दिनों दिन कमजोर होने वाले परिवारों के बच्चे स्कूल का मुंह नहीं देख सके। कभी बंदर भालुओ की नाच दिखाकर लोगों का मनोरंजन करने वाले कड़ा निवासी पैसठ वर्षीय मो0 बसारुल की दोनों आंखों में रोशनी नहीं रह गई। छप्पर में मुफलिसी का जीवन गुजर करने वाले वृद्ध बसारुल ने बताया कि प्रतिबंधों ने हमारी रोजी रोटी को छीन लिया। खेती इतनी नहीं है कि जीवन का गुजारा किया जा सके। सरकारी योजनाएं भी हम गरीबों की पीड़ा पर मरहम नहीं लगा पायी जिसके चलते टूटी फूटी झोपड़ी में बदनसीबी भरा जीवन गुजर रहा है। हैण्ड पंपों का समुचित प्रबंध नहीं है। पेशे से जुड़े इसी गांव के मो0 कैसर,उस्मान अली,फिरोज अहमद आदि लगभग एक दर्जन परिवारों के मुखिया ने बताया कि घर के बच्चे रोजी रोटी के जुगाड़ में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। उक्त लोगों ने बताया कि मेहनत मजदूरी के लिए ईट भटठों पर जाना पड़ता है। इसके बावजूद भरण पोषण नहीं हो पाता। गांव के बाहर बगीचे में पशु चरा रहे बच्चों ने बताया कि हम लोग चाह कर भी स्कूल नहीं पहुंच सके।