राजीव कुमार जैन रानू
ललितपुर। नवरात्रि पर्व के समापन के पावन अवसर पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि जीत को सके अजय रधुराई का स्थिर चित्त जब रणांगन में कुछ क्षण के लिए संशय से हिल उठा तो उन्होंने नौ दिन तक शक्ति की भक्ति की। शक्ति माता प्रकट हुईं और उन्होंने वरदान दिया होगी जय! होगी जय! कह, महाशक्ति राम के मुख में हुई लीन। देवी भागवत पुराण में कहा गया है विन्ध्याचल निवासिन्या: स्थानं सर्वोत्तमोत्तमम्। श्री देवी भागवत के अनुसार माँ भगवती ने अपने निवास स्थानों का वर्णन करते हुए विन्ध्याचल को अपना सर्वोत्तम स्थान बताया है। यही कारण है कि बुन्देलखण्ड के प्रत्येक गाँव में हजारों साल से शक्तिपीठ गतिशील हैं। हरएक के कंठ में देवी माँ के स्तुति लोकगीत रचे-बसे हैं बुन्देली लोकगीतों की रागिनी जब निनादित हो उठती है कि लिख-लिख पतियां भेजी राम ने/तुम दुर्गा चली आओ हो मांय/वन सों सिंघा लाओ हो मांय/इक सिंघा को गयीं जगतारण, दो सिंघा चले धाय हो मांय/जब दोनों ने दई हुंकारी, भगदड़ पड़ी दिखाएं हो मांय/ वस्तुत: सिंह का मार्मिक प्रसंग इस सत्य को उद्घाटित करता है कि सिंहनी पर जब संकट आता है तो वह रक्षा के लिए वह अपने सिंह को टेर नहीं लगाती, क्योंकि वह स्वयं अपने को स्वरक्षित मानती है। भारतीय संस्कृति में नारियों में आत्मा का बल कूट-कूट कर भरा है, इसलिए वे सुरक्षित नहीं अपने को स्वरक्षित माने। गाँधीजी का कहना है कि दो पांव वाला आदमी यदि जानवर बनकर उन पर आक्रमण करे तो दया और ममता की प्रतिमूर्ति नारी को हिंसा अहिंसा का विचार त्यागकर चण्डीरूप धारण कर लेना चाहिए। परमात्मा ने उन्हें भी नाखून और दांत दिये हैं। मार्कण्डेय पुराण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग दुर्गा सप्तशती है, जो युगों-युगों से नर-नारियों में तेज का संचार कर रहा है। आधुनिक समय में भगवान राम अर्थात जन-जन को जीत दिलाने के लिए गोलबंद करता यह त्योहार यह भरोसा दिलाता है, जीत को सकै, अजय रघुराई वेदान्त (वेद, उपनिषद और गीता) में शक्ति को प्रकृति कहा गया है, जहां भी सृजनशीलता है, वहां मां का वात्सल्यमय प्रतिरक्षण विद्यमान है। जिस प्राणी में बल होता है, वही रक्त के दुर्गुणों के बीजों को अंकुरित होने से रोक सकता है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में रक्तबीज नामक दैत्य की कथा पहले ही से ज्यादा प्रासंगिक है। क्योंकि बुराईयों के एक बीज से ही समस्त बुराईयां दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहीं हैं। इस दुर्गति का नाश करने के लिए प्रत्येक को अपने भीतर छिपी मातृशक्ति को जगाना होगा।