आलोक मिश्र/शहनाज बेगम
अशोक स्तंभ को मुगल शासक उठा ले गया इलाहाबाद
उत्खनन में किला, बुद्ध बिहार और पाषाण प्रसाद के मिले अवशेष
कौशाम्बी। किसी भी नगर का अतीत, उसके वर्तमान और भविष्य का गौरव होता है। उसकी सभ्यता का इतिहास जितना गौरवशाली होता है, विकास की दृष्टि से वह नगर उतना ही ऊंचा माना जाता है। यही विरासत और सभ्यता नगर के विकास के परिचायक भी माने जाते हैं। हमारे गौरव का प्रतीक अशोक स्तंभ को मुगल बादशाह अकबर इलाहाबाद (प्रयागराज) न ले गया होता तो प्राचीन वैभव की दृष्टि से कौशांबी की ख्याति विश्व में अलग होती। गौरतलब हो कि प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में वत्स राज्य की कौशाम्बी राजधानी हुआ करती थी। इसका क्षेत्रफल चेदि (आधुनिक ग्वालियर स्थित चंदारी) एवं पूरा बुंदेलखंड, मगध (दक्षिणी बिहार व नेपाल) पश्चिम में अवंति (उज्जैन) से लेकर मत्स्य विराटनगर (राजस्थान की अरावली पहाड़ी तक) कोसलपुर (अयोध्या और गोरखपुर) शूरसेन (आधुनिक ब्रज और मथुरा) से इसकी सीमाएं मिली थी। कहा जाता है कि चेदि के राजकुमार कुश ने यमुना नदी के किनारे इस नगर बसाया था, इसीलिए कालांतर में इसका नाम कौशाम्बी पड़ा। पुराणों के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पांचवी पीढ़ी में निचक्षु के शासन के दौरान गंगा की बाढ़ में हस्तिनापुर नष्ट हो गया था। तब उन्होंने अपना राज्य कौशाम्बी में स्थापित कर लिया। 550 ई. पू. गौतम बुद्ध के समकालीन ही राजा शतानीक के पुत्र उदयन का जन्म हुआ था। राजा उदयन के शासन काल में कौशाम्बी बहुत ही समृद्धशाली था। मध्य में होने के चलते यह नगर प्राचीन भारतीय संचार और नदी यातायात का जंक्शन एवं महत्वपूर्ण व्यापारिक संग्रह था। यहीं के एक व्यापारी घोषिताराम ने राजा उदयन के किले के पास ही बुद्ध बिहार का निर्माण करवाया था। भगवान बुद्ध को 528 ई.पू. के करीब बोध ज्ञान प्राप्त होने के छठवें और नौवें साल में उपदेश देने कौशाम्बी नगर आये थे। ईसा मसीह के जन्म से 262 साल पहले मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कलिंग (वर्तमान उड़ीसा) पर आक्रमण किया था। युद्ध में नरसंहार को देख अशोक के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह विचलित होकर साम्राज्यवादी नीतियों को त्याग भगवान बुद्ध के मार्ग को अपना लिया। पत्नी और पुत्रो समेत शिला और स्तंभ स्थापित करवा अहिंसा और शांति का लेख उत्कीर्ण करवा प्रचार प्रसार करने लगा। 250 ई.पू. स्थापित स्तंभ में ब्राह्मी लिपि से महमात्रो को चेतावनी दी गई है कि यदि कोई बौद्ध भिक्षु या भिक्षुणी संघ को भंग करता है तो उसे श्वेत वस्त्र पहनाकर संघ से बाहर निकाल दिया जाएगा। स्तंभ में अशोक की पत्नी कारूवाकी ने बौद्ध भिक्षुओं को दान देने का उल्लेख किया है। इसीलिए इस स्तंभ को रानी के अभिलेख के नाम से भी जाना जाता है। भगवान बुद्ध के समय कौशाम्बी भारत के छह सबसे महत्वपूर्ण और समृद्ध नगरों में से एक था। 600 ई.वी. तक इसका ऐश्वर्य और महत्व बरकरार था। इसी समय चीनी यात्री फाहियान और युआन-चवंग ने नगर का दौरा किया था। लेकिन इसके बाद अवंति और पाटिलीपुत्र से टकराव से यहां का शासन धीरे धीरे कमजोर होता गया। पुरातत्व विभाग के उत्खनन में बौद्ध बिहार, पाषाण राज प्रसाद और किला में जले हुए अवशेष और हूण राजा तोरमाण की मुहरें मिली हैं। इन मुहरों में तोरमाण और हूणराज उत्कीर्ण हैं। इससे पता चलता है कि हूणों ने आक्रमण के बाद लूट पाट कर आग लगाकर कौशाम्बी को समृद्धविहीन कर दिया। मुगल शासन के दौरान 1583 ई.वी. के करीब बादशाह अकबर कौशाम्बी के गौरव अशोक स्तंभ को इलाहाबाद किला उठा ले गया। कहा जाता है कि उखड़वाने के दौरान स्तंभ बीच से टूट गया था। स्तंभ के ऊपरी भाग को इलाहाबाद किला में स्थापित करवा दिया। अकबर के पुत्र जहांगीर ने 1605 ई.वी. में अपने तख्त पर बैठने का वाकया इसी स्तंभ पर उत्कीर्ण कराया। जो मिलिट्री छावनी में किला के अंदर बंद है। कौशाम्बी पुरातात्विक स्थल की खोज का श्रेय अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है। जो 1861 में यहां की यात्रा कर ध्यानाकर्षण करवाया था। इनकी रिपोर्ट के बाद 1936-38 में भारतीय पुरातत्व विभाग के एन. जी मजूमदार ने अशोक स्तंभ क्षेत्र में उत्खनन किया था। 1948 में सर मोर्टिमर व्हीलर से अधिकृत होने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गोवर्धन राय शर्मा ने 1949 और फिर 1951 से 1956 में टीले की खुदाई के दौरान राजा उदयन का किला एवं उच्चकोटि वाले कई तरह के मृदभांड, सिक्के समेत घोषिता राम बिहार, पाषाण निर्मित प्रसाद, सुरक्षा प्राचीर के अवशेष मिले हैं।
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छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु की जन्म और तप स्थली है कौशाम्बी
कौशाम्बी जैन धर्म का प्राचीनतम केंद्र रहा है। यहीं पर भगवान पद्मप्रभु ने इक्ष्वाकु वंश के राजा श्रीधर के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। कहा जाता है कि भगवान महावीर स्वामी के 175 दिन व्रत के बाद चंदनबाला की बेड़िया टूट गई थी। तब जाकर चंदन बाला ने सूप में उर्द की दाल फटक कर भगवान पद्मप्रभु का व्रत तोड़वाया था। चंपहा बाजार का नाम चंदन बाला के नाम से ही पड़ा है।
अशोक स्तंभ स्थापित होने से बुद्ध की धरती का बढ़ेगा पर्यटन
शासन बिहार प्रांत के गया और सारनाथ को कौशाम्बी से जोड़ बुद्ध सर्किट का निर्माण कर रही है। बेहतर यातायात के लिए कौशाम्बी और प्रयागराज की सीमा पर स्थित बमरौली एयरपोर्ट से फोरलेन सड़क का तेजी से काम किया जा रहा है। प्रयागराज किला में बंद शांति और अहिंसा संदेश के मूल स्तंभ को बुद्ध की धरती पर स्थापित करने से निश्चित ही देश और विदेश के बुद्धिष्ठ अनुयायियों का पर्यटन जनपद में बढ़ेगा।
हर साल आते हैं विदेशी बौद्ध अनुयायी
भगवान बुद्ध की धरती कौशाम्बी में हर साल कंबोडिया, थाईलैंड, श्रीलंका, वर्मा, नेपाल, तिब्बत आदि देशों से हजारों अनुयायी आते रहते हैं। तिब्बती धर्मगुरु भी कौशाम्बी में आकर बुद्धबिहार का दर्शन कर चुके हैं। विदेशी बुद्ध अनुयायियों ने कंबोडिया मंदिर का भी निर्माण कराया है।







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