राकेश केशरी
कौशाम्बी। पुस्तक केवल एक शब्द नहीं है। यह सदियों की परंपरा, रिश्ते और जीवन के साथ ही देश व दुनिया में आए उतार चढ़ाव की गवाह हैं। समय के साथ लोगों की सोच और आदत में परिवर्तन हुआ है। डिजिटल युग में लोगों ने पुस्तकों से दूरी बनाना शुरू कर दिया है लेकिन आज भी इसके महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता यह बात दूसरी है कि लोग साहित्य से जुड़ी किताबों से थोडा दूर होते जा रहे हैं। बचपन में सिखाया गया है कि हमारा सब से अच्छा कोई दोस्त है तो वह किताबें हैं। किताब जहां हमें ज्ञान देती हैं, वहीं इनके माध्यम से हमारी समझ बढ़ने के साथ सामाजिक दायरा भी बढ़ता जाता है। जमीन के नीचे से लेकर सात समंदर पार और सातवें आसमान तक की जानकारी किताबों से मिलती हैं। साहित्य के लिए तो किताबों से बड़ा कोई विकल्प सोचा ही नहीं जा सकता है लेकिन वर्तमान में डिजिटल युग ने सब से अधिक प्रभाव साहित्य से जुड़ी किताबों पर डाला है। लोग सीधे किताब न खरीदकर उनको इंटरनेट मीडिया से पढ़ रहे हैं। किताबों की दुकानों में जहां किसी कक्षा से जुड़ी पुस्तकों के अलावा साहित्य से जुड़ी पुस्तकों की भरमार होती थी। वहीं अब इनका स्थान धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर भी लोगों का रुझान किताबों की ओर कम ही दिखा। सरायअकिल के पुस्तक विक्रेता मनोज चैरसिया ने बताया कि किताबों की ओर लोगों को रुझान कम हुआ है। अब तो कोर्स की किताबें ही ज्यादा लोग खरीद रहे हैं। साहित्य से जुड़ी किताबें तो बंद हो गई है। चुटकुला और कामिक्स के किताबों की तो मार्केट ही खत्म हो चुकी है। अभिषेक केसरवानी का कहना है कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में अब समय ही नहीं मिलता की साहित्य की किताबें पढ़ सके। विषय से जुड़ी सामग्री पढ़ने में ही समय व्यतीत हो जाता है। छात्रा उन्नति केसरवानी का कहना है कि कक्षा के अलावा विषय से जुड़ी कोई चीज खोजना या पढ़ना हो तो कंप्यूटर और मोबाइल में सब मिल जाता है। जबकि किताब में खोजना कठिन होता है।