राकेश केशरी
कौशाम्बी। अप्रैल माह में मई की तपिश ने सबको बेहाल कर दिया है। चिलचिलाती धूप में पालतू व जंगली जीव तप रहे हैं। तालाबों में पानी न होने से पशुपालकों के सामने मवेशियों को नहलाने व पानी पिलाने का संकट है तो जंगली पशु-पक्षी भी पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। पशुओं के पेयजल संकट में सूखी नहरें कोढ़ में खाज का काम कर रही हैं। जिले की 451 ग्रामसभाओं में दो हजार से अधिक तालाब हैं। इन तालाबों में बूंदभर पानी नहीं है। यदि किसी तालाब में पानी है भी तो गंदगी की चलते बदबू कर रहा है। ऐसे में जिले के गाय-भैंस पालने वाले पशुपालकों के समक्ष मवेशियों को नहलाने व पिलाने के लिए पानी का संकट खड़ा हो गया है। अप्रैल माह की शुरूआत से बढ़ी गर्मी ने अब पालतू व जंगली मवेशियों की तपिश बढ़ा दिया है। पालतू मवेशियों को तो हैंडपंप के सहारे पानी किसी तरह मिल जा रहा है पर जंगली नील गाय, लकड़बग्घे, सियार, लोमड़ी, खरगोश आदि प्यास से हांफ रहे हैं। उधर माइनरों में पानी न छोड़े जाने से तालाबों में जलभराव नही हो पा रहा है। राजकीय नलकूप आपरेटर भी तालाबों में पानी नहीं भर रहे हैं। उनका कहना है कि इस बावत अभी शासन-प्रशासन से कोई आदेश नहीं दिया गया है। शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते पशुपालकों के समक्ष जहां समस्या खड़ी हो गई है वहीं जंगली जीवों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है।