सरकार ने किसानों की फसल रखने को बनवाये थे चबूतरे
व्यापारियों के अवैध कब्जों से हर साल फसल बहने से रोते हैं किसान
नीलामी चबूतरों से मिलने वाला किराया जाता है ऊपर तक
ललितपुर। किसानों की हमदर्द रहीं सरकारों ने मुख्यालय स्थित गल्ला मण्डी में बारिश से फसलों को बचाने के लिए नीलामी चबूतरों का निर्माण कराया था। नियमानुसार इन चबूतरों पर खेत से आने वाली फसलों को रखकर नीलामी की जाती थी, जिसे व्यापारी खरीदकर अपने-अपने गोदामों में रखवा लेते थे। लेकिन गल्ला मण्डी प्रशासन व व्यापारियों की गहरी सांठगांठ से अब ट्रॉलियों से ही सीधे नीलामी हो जाती है और माल गोदाम में रखने के बजाय नीलामी चबूतरों पर रख दिया जाता है। बारिश और तेज धूप होने पर किसानों का ट्रॉलियों में भरा या फिर जमीन पर रखी गयी फसलें भीगकर खराब हो जाती हैं और किसान अप्रैल, मई की भीषण गर्मी में धूप से बचने के प्रयास में देखा जाता है। बारिश में कुन्तलों गेंहू बिना बिके और तुलाई के ही नालियों में बह जाता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में किसानों ने लखनऊ प्रशासन व स्थानीय प्रशासन, जहां तक उसकी आवाज पहुंच सकती है तब मांग उठाते हुये व्यापारियों द्वारा अवैध तरीके से कब्जा किये गये नीलामी चबूतरों को खाली कराकर किसानों के हवाले किये जाने की मांग उठायी है।
साहब, आपकी आंखें भले ही मण्डी में नीलामी चबूतरों पर व्यापारियों के अवैध कब्जों को नहीं देख पा रहीं हों, लेकिन खून के आंसू रोते किसान अपनी आंखों से बारिश में अपनी फसल को बहते पानी में बर्बाद होते अवश्य देखते हैं। यह समस्या नई नहीं है ? दरअसल जनपद की गल्ला मण्डी एक बड़ी मण्डी होने का खिताब अपने नाम किये हैं। चूंकि मध्य प्रदेश की सीमाओं से घिरे ललितपुर की मण्डी में आसपास के इलाकों से भी फसलों की आवक होती है। बड़े पैमाने पर आने वाली फसलों को रखने के लिए व्यापारियों के पास पर्याप्त बड़े-बड़े गोदाम भी हैं, लेकिन कालाबाजारी करने की बदनीयत से कुछ फसलों को तालों के अंदर कैद रखने के लिए यह गोदाम उपयोग किये जाते हैं। ताले में कैद की गयी फसलें, जो कि कम दामों में खरीदी गयीं, उनके दाम बढ़ते ही गोदामों के ताले भी खोल दिये जाते हैं। ऐसे में सीजन की फसलें आने पर व्यापारियों द्वारा गल्ला मण्डी प्रबंधन से मिलीभगत कर नीलामी चबूतरों पर पहले से ही अवैध कब्जा जमा लिया जाता है और फसल लेकर मण्डी में आने वाला किसान बारिश होने पर रोते बिलखते हुये अपनी फसलों को भीगकर बर्बाद होते देखता रहता है। ऐसे में न तो प्रशासन का आर्थिक मलहम किसानों के गहरे जख्मों पर लगाया जाता है और न ही व्यापारियों के इस रवैये पर कोई सवाल पूछने वाला सामने आता है। बीते दिनों कैमरे में कैद हुयीं कुछ तस्वीरों में फसलों को पानी में बहते हुये रिकॉर्ड किया गया, हालांकि तत्समय कुछ समाचार पत्रों तक इन समस्याओं को पहुंचाने का प्रयास भी किया गया, लेकिन किसानों की समस्याओं को सुनने वाले जिम्मेवारों के कानों तक यह विकराल समस्या न तो सुनाई दी और न ही दिखाई दी। प्रत्येक वर्ष के साथ ही यह वर्ष भी सीजन का आयेगा और व्यतीत हो जायेगा।
किसान संगठनों की किचकचाई आंखें
जनपद में किसान हितों की बात करने वाले कई संगठन हैं, जो समय-समय पर कलेक्ट्रेट व पुलिस कार्यालय पर नजर आ जाते हैं। लेकिन हैरत की बात है कि वर्षों से गल्ला मण्डी में नीलामी चबूतरों पर व्यापारियों के अवैध कब्जों के खिलाफ आज तक कोई किसान संगठन नजर नहीं आया, जो कि एक विचारणीय प्रश्न है। क्योंकि नीलामी चबूतरों पर किसानों की फसलें रखी जानी चाहिए और उस पर कब्जा व्यापारियों का होता है। ऐसे में किसान अपनी फसल को रखे तो रखे कहाँ ?