राकेश केशरी
कौशाम्बी। सुहाने कल की उम्मीद में नागरिको का दो दशक बीत गया। जिलें में रेल और परिवहन की सेवाओं में सफर अब तक सुहावना नहीं हो सका है। मुख्यालय मंझनपुर में एक अदद बस स्टेशन की शुरूवात हुई वह भी जिम्मेदारो की लापरवाही की भेट चढ गई। वही जनपद के सिराथू व भरवारी रेलवे स्टेशनो पर डेढ़ दर्जन लंबी दूरी की महत्वपूर्ण ट्रेनें यहां रुके बिना टाटा.बाय.बाय कर गुजर जाती हैं। आवागमन की सार्वजनिक व्यवस्था अनुबंधित व प्राइवेट बसों पर आश्रित है। माडल रेलवे स्टेशन आधुनिकीकरण की घोषणाओं का पुलिंदा ढो रहा है। परिवहन निगम की अंर्तजनपदीय बस सेवाओं के लिए लोगों को मौसम की प्रतिकूलता में सड़क किनारे खड़े होकर बस की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जिले के अनेक ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहां आज भी आवागमन की सुविधा डग्गामार वाहनों पर आश्रित है। आजादी के 76 वर्ष बाद भी कौशाम्बी जिले में राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में रेल सुविधाएं दोयम दर्जे की हैं। अंग्रेजों के जमाने का बना सिराथू व भरवारी रेलवे स्टेशन जिले की परिवहन व्यवस्था की जान है। इन स्टेशनो पर सुपर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। वही रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधा पर्याप्त नहीं है। पीने के पानी की व्यवस्था तो है लेकिन गर्मी के लिए वह बिल्कुल बेकार है। स्टेशन अधीक्षक का कहना है कि सुपर एक्सप्रेस के ट्रेनों के ठहराव का निर्णय रेल मंत्रालय को लेना है। कई ट्रेनों के बारे में मंत्रालय को अवगत कराया गया है। इस संबध मे यात्रियो कि अलग-अलग राय है शिवेन्द्र त्रिपाठी का कहना है कि रोडवेज बसों का संचालन ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं होता जिससे न चाहते हुए भी डग्गामार वाहनों से सफर करना पड़ता है। राजकुमार कहते हैं कि चाहे ट्रेन हो या बस जिले में इन दोनों व्यवस्थाओं से लोगों को कोई फायदा नहीं है क्योंकि ये व्यवस्थाएं खरी नहीं हैं। रबीकरन का कहना है कि जिला बने 25 वर्ष का लम्बा अर्सा बीत चुका है तो फिर ट्रेन और बसों का संचालन ठीक ढंग से क्यों नहीं हो रहा है। शिवदुलारी कहती हैं कि पैसा देने के बाद भी बस व ट्रेन से यात्रा सुखमय नहीं होती।