मुबारकपुर में प्राथमिक स्कूल तक नहीं
कौशाम्बी। छठी शताब्दी ईसा पूर्व दोआबा जितना समृद्ध था। आज उतना ही कमजोर हो गया है। विकास के नाम पर महज औपचारिकताएं ही पूरी की गई हैं। जिले में शिक्षा जैसी जरूरी व्यवस्था भी आज तक सुदृढ़ नहीं हो पाई है। ऐसे में बेरोजगारी इस जिले की पहचान बनती जा रही है। कौशाम्बी को जनपद का दर्जा मिले दो दसक अधिसक का समय बीत रहा हैं। इस दौरान दोआबा में ऐसा कुछ भी नहीं हो सका है जिससे किसी की दो जून की रोटी का इंतजाम हो सके। इसे लेकर यहां का बुद्धिजीवी तबका बेहद चिंतित है। लोगों का कहना है कि शिक्षा से ही जीवन सुखमय होता है। जिले में जब शिक्षा की ही बढिया व्यवस्था नहीं है तो यहां के लोगों का भविष्य कैसे सुखमय हो पाएगा। गौरतलब हो कि शासन ने जनपद के अधिकांश गांवों में परिषदीय विद्यालय खुलवाए हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत पूरी कोशिश की जाती है कि गरीबों के बच्चे भी पढ़ लिख सकें लेकिन जिला स्तरीय अफसरों की लापरवाही के कारण यहां आज भी अधिकांश गरीब घरों के बच्चे या तो कहीं मजदूरी करते हैं या फिर जानवर चराते हैं। जिले में उद्योगों का भी बेहद अभाव है। शायद इसी कारण यहां से पलायन हो रहा है। बतां दें कि मंझनपुर तहसील क्षेत्र के गांव मुबारकपुर में विकास तो दूर प्राथमिक विद्यालय तक नहीं है। यहां के नौनिहाल पड़ोसी गांव शाहपुर में शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं। जिला मुख्यालय से 37 किमी दूर सरसवां विकास खंड में यमुना की तराई में मुबारकपुर गांव आबाद है। आर्थिक तौर से पिछड़े इस गांव में शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है। यहां ब्राह्मण, ठाकुर, केवट, अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। अधिकतर जनसंख्या केवटों की है। ये लोग रोजी रोटी के नाम पर यमुना में मछली मारते हैं तथा ट्रकों में बालू लोडकर जीवन यापन कर रहे हैं। स्कूली बच्चे पड़ोसी गांव शाहपुर में पढने जाते हैं। इस प्राथमिक विद्यालय में चार सौ से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दो शिक्षक व दो-दो सहायक अध्यापक विद्यालय में तैनात हैं। गांव में बुनियादी सुविधा के नाम पर बिजली का तार खिंचा है लेकिन वह भी केवट बस्ती की ओर नहीं है। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इस गांव में प्राथमिक विद्यालय खुलवाया जाए। जिससे बच्चों को परेशानियों का सामना न करना पड़े।