राकेश केशरी
वनीकरण से रोजगार सृजन करने में मनरेगा भी फेल
कौशाम्बी। वनीकरण को रोजगार से जोडने में सरकारी तंत्र की नाकामी का नतीजा है कि जिले से हरियाली गायब हो चुकी है। वनीकरण से रोजगार सृजन करने में मनरेगा भी फेल है,क्योंकि अफसरों को परवाह ही नहीं है कि पौधरोपण और देखभाल कराने के लिए मजदूरों को रोजगार मुहैया कराएं। स्याह पहलू यह है कि दिन के उजियारे और रात के अंधेरे में हरे.भरे पेड़ों के कटाने से माफिया और सरकारी तंत्र का आर्थिक हित अवश्य पूरा होता रहता है। जिले में जंगल लगभग गायब हो चुके हैं। कागजों में भले ही 759 हेक्टेयर भूमि पर जंगल दर्ज हो, लेकिन धरातल पर बचे 455 हेक्टेयर एरिया में भी अधिकांश हिस्से में पेड़.पौधे नहीं हैं। सिर्फ कहने को वन है। दूर.दराज के गांवों की बात छोडिए कलक्ट्रेट से पांच किलोमीटर दूर और पुलिस लाइन से सटे वन एरिया में कागजों पर सघन जंगल हैं,लेकिन हकीकत में वहां न जंगल है और न पर्याप्त पेड़। वहीं गंगा के तराई स्थित सिपाह,देबीगंज,कड़ा,शहजादपुर आदि वन एरिया भी निरंतर सिमटने लगा है। वन एरिया ही नहीं बल्कि अब किसानों के खेतों में भी ज्यादा पेड़ दिखाई नहीं पड़ते। कारण साफ है कि बढ़ती आबादी के बोझ से जहां वन एरिया की जमीन पर अवैध कब्जा हुआ है,वहीं पिछले दो.तीन दशक से माफिया पेड़ों का कटान करा लाखों के वारे.न्यारे करते रहे हैं। सरकारी तंत्र भी आर्थिक हित साधने में लगा रहा। बाकी कसर वनीकरण को रोजगार से जोडने की योजनाओं को फाइलों में लपेटने की प्रवृत्ति ने पूरी कर दी है। मनरेगा योजना को लें तो गांवों में पौधरोपण को गड्ढों की खोदाई, सिचाई और पौधों की सुरक्षा एवं देखभाल को हजारों मजदूरों को रोजगार मिल सकता है। सौ पौधों पर एक मजदूर रखने की व्यवस्था भी कहीं नजर नहीं आती है। मनरेगा से लघु एवं सीमांत किसानों के खेतों पर पौधरोपण कराकर उनकी आय बढ़ाने का प्रावधान कागजों में सिमटा है। वहीं उद्यान विभाग की अनदेखी से अमरुद,आम,शीशम,आंवला तथा जामुन के पेड़ो में आरा और कुल्हाड़ा चलता रहता है। साफ है कि वनीकरण को रोजगार से नहीं जोडने के कारण वनीकरण का काम ध्वस्त है।

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