राकेश केसरी
कौशाम्बी। जन्म के दो माह बाद यदि बच्चा न मुस्कुरायें या तीन महीने बाद अपनी गर्दन नहीं संभाल पाए तो माता-पिता को सतर्क हो जाना चाहिए। क्योंकि यदि बच्चे में इस प्रकार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो उसको मिर्गी (एपीलैप्सी) रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। सामान्य बच्चा जन्म के दो माह बाद मुस्कुराने लगता है और तीन माह बाद अपनी गर्दन संभाल लेता है। कुछ मामलों में यह संभव नहीं हो पाता है। इसका कारण बच्चे का एपीलैप्सी यानि मिर्गी रोग का शिकार होना है। दरअसल गर्भ के अंदर या प्रसव के दौरान अधिकतर बच्चों के मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है। इसी दबाव के कारण बच्चे में मिर्गी रोग होने की आशंका होती है। बच्चों में दौरा पडने के लक्षण बहुत ही कम दिखते हैं। जन्म लेने वाले आधा फीसदी बच्चों में गर्भ के दौरान संक्रमित होने से मिर्गी रोग होने का खतरा होता है। बड़े बच्चों के साथ भी यही समस्या हो सकती है। अगर आपका बच्चा पढने में होशियार है और अचानक ही पढ़ाई से उसका ध्यान हटने लगे और उसके हाथ से चीजें छूटने लगे तो यह एक प्रकार की मिर्गी (अब्सेंस एपीलैप्सी) ही होती है। हजारों वर्ष पूर्व मिर्गी की बीमारी की पहचान कर ली गई थी। इसे महर्षि चरक ने स्मृतिहीनता की बीमारी के रूप में पहचाना था। विशेषज्ञों के अनुसार हर दो सौ में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से इस बीमारी से ग्रस्त हो सकता है। चिकित्सा विज्ञान में मिर्गी दो प्रकार की बताई गई है। सिम्पटोमैटी व इंडिगोपैथी एपीलैप्सी। चिकित्सकों के अनुसार इंडिगोपैथी से ग्रस्त होने वाले मरीजों की संख्या अधिक है। सिम्पटोमैटी की 15 से 17 फीसदी वजह टेप वर्म है। यह कीड़ा सिर्फ आदमी व सुअर के पेट में ही पलता है। इसके अंडे दिमाग तक पहुंच जाते हैं तो मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। मिर्गी के अन्य अज्ञात कारणों में दिमाग अविकसित रह जाना है। इससे ग्रस्त लोगों की संख्या तीन फीसदी है। ब्रेन टीबी होने से दिमाग में गांठ बन जाती है और स्नायु तंत्र बाधित हो जाने से दौरा पड़ता है। मिर्गी से ग्रस्त लोगों में पांच फीसदी ऐसे भी होते हैं जिनके सिर में चोट लगी होती है। तीन फीसदी मरीजों में मिर्गी का दौरा पडने की वजह ब्रेन ट्यूमर पाया गया है। बच्चे को मां का दूध तुरंत शुरू न करने से उसके रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। यह भी भविष्य में मिर्गी आने का कारण माना जाता है।
समय पर उपचार नहीं मिलने पर हो सकता है जानलेवा
जिला चिकित्सालय के डाक्टर विवेक केशरवानी का कहना है कि बच्चों में इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर उसका उपचार तुरंत कराना चाहिए। समय पर उपचार नहीं मिलने से यह रोग बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इसके अतिरिक्त परिजनों को भी बच्चे का विशेष ख्याल रखना चाहिए। किसी भी सूरत में बच्चे को अकेला नहीं छोडना चाहिए।

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