राकेश केसरी
शासन की सर्व शिक्षा अभियान व बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम कानून भी भट्टा मजदूरों के बच्चों को शिक्षा की ओर उन्मुख नहीं कर पाया
कौशाम्बी। खुदा के वास्ते न पर्दा हटा रुखसार से जालिम। कहीं ऐसा न हो यहां भी काफिर सनम निकले। मिर्जा गालिब की यह पंक्तियां इस समय लोगों की हित का दावा कर चलायी जा रहीं योजनाओं पर सटीक बैठती है। भले ही मनरेगा,सर्व शिक्षा अभियान,लोहिया व इंन्दिरा आवास आदि योजनाओं से लोगों की स्थिति सुधारने का दावा किया जा रहा हो,लेकिन हकीकत में गरीब और पात्र आज भी दुर्दशा की जिंदगी गुजार रहे हैं। रोजगार के नाम पर बधुआ की तर्ज पर मजदूरी मजबूरी है तो पेट पालने के लिए बालश्रम जरूरी है। यह हकीकत देखना हो तो ईंट भंट्टे पर आइये। यहां काम करने वाले शिक्षा का अधिकार कानून,मनरेगा, आवास कोई योजना नहीं दिखेगी। हजारों बेवश भट्टा मजदूरों की जिंदगियां भट्टा मालिकों के रहमो करम पर है। गरीबी के चलते अरमानों का गला घोंट कर जी रहे हैं। भंट्टे के पास बनी झोपडियों में ही इनका आवास है तो इनके बच्चें विद्यालय नहीं,काम करने जाते हैं। पोषण क्या होता इनको तो पता तक नहीं है। बतां दें कि कौशाम्बी जैसे छोटे जनपद में दो सौ के करीब ईट भट्टा संचालित हो रहे हैं। जबकि अकेले चरवा थाना क्षेत्र में ईट भट्टो की सख्यां पचास के आसपास है। औसतन प्रत्येक भट्टा पर सौ मजदूर ईट पथाई सहित कई अन्य कार्य करते हैं। यह श्रमिक बिहार के गया,समस्तीपुर,हजारीबाग,छपरा,मुजफ्फरपुर,चंपारण व पूर्णिया, झारखंड के कोडरमा आदि जिलो से मजदूरी के लिए आतें हैं। मूलत: दलित वर्ग के मांझी,पासी,व चुनका समुदाय के यह मजदूर परिवार सहित भट्टों पर दरबे नुमा घर बनाकर हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। और इन मजदूरों के बच्चे शिक्षा की मुख्य धारा से बिल्कुल दूर है। शासन की ओर से सर्व शिक्षा अभियान और बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम जैसा कानून भी इन बच्चों को शिक्षा की ओर उन्मुख नहीं कर पाया। वहीं यह बच्चे भट्टो पर श्रम भी करते हैं जिसको लेकर श्रम विभाग ने भी अभी तक इस तरह का कोई उपक्रम नहीं किया जिससे भट्टो पर बाल श्रम का उन्मूलन हो सके। वही मजदूरों के घरों की महिलायें भी उनके काम में बराबर हाथ बंटाती है। शासन की ओर से महिलाओं के लिये तमाम कल्याणकारी योजनायें चलाई गई। इनमें सबसे प्रमुख जननी सुरक्षा योजना है। आज तक किसी मजदूर की पत्नी को जननी सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिला बल्कि पिछले एक साल के दौरान कई ऐसे मामले प्रकाश में आये। जिनमें प्रसूता की जान चली गई। महिला श्रमिक रानी व प्रभा का कहना है कि महिलाओं के लिये कई योजनायें हैं लेकिन सबसे मूल अधिकार मतदान से भी वह वंचित हैं। सवित्री का कहना है कि बिहार प्रदेश में उनका वोट है, लेकिन आज तक वह अपना वोट नहीं डाल पाई। इसका मुख्य कारण यह है कि जब भी मतदान हुआ वह वहां मौजूद नहीं थी। चरवा थाना क्षेत्र के एक ईट भट्टे पर काम करने वाले श्रमिक बिहार के जिला नवादा निवासी ओमी ने बताया कि उनके मूल प्रदेश में तो सरकार ने वैसे भी कोई कदम नहीं उठाये। यहां की सरकार भी उतनी ही निष्ठुर है। विश्वनाथ ने बताया कि शासन की ओर से मजदूरों के लिये तमाम योजनायें हैं लेकिन उनके पास तक आते.आते यह योजनायें भट्टो के धुयें की तरह उड़ जाती हैं। कोडरमा झारखंड के बाबूराम व विकास का कहना था कि न जाने कब इस दासता से मुक्ति मिलेगी।

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