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आंखों में कैद सपने, दिल में टूट रहे अरमान

Sunday, January 8, 2023

/ by Today Warta



राकेश केशरी

कौशाम्बी। मैं खिलौने की दुकानें देखता ही रह गया, और फूल से बच्चे मेरे सयाने हो गए। ये स्याह सच है, उस बचपन का जो मुफलिसी में बीतता है। जिस उम्र में हाथ में कलम और किताबें थामते हैं, उस उम्र में बचपन परिवार का हाथ बंटाता है। बेबसी के चलते वह तो शिक्षित न हो सके और उनके बच्चे भी इससे दूर होते जा रहे हैं। जिले में 10 हजार से अधिक श्रमिक ईंट भट्ठों पर कार्य कर रहे हैं। जहां एक ओर सरकार बच्चों को शिक्षित करने के लिए लाखों रुपये खर्च कर सभी सुविधाएं उपलब्ध करा रही है। वहीं दूसरी ओर ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूर परिवार के बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। जिन हांथों में कमल और किताब होनी चाहिए, आज वही हाथ परिवार का सहारा बन रहे हैं। पूरामुफ्ती थाना क्षेत्र के एक ईट भट्ठे पर बिहार के बक्सर जिलें के निवासी सुदेश पुत्र रामेश्वर अपनी पत्नी शर्मिला के साथ मजदूरी करते हैं। वह तो पढ़े लिखे नहीं हैं और उनके बच्चे राजू, विमला, काजल और शिवानी भी नहीं पढ़ पा रहे हैं। ऐसा ही अमित,अनिल कुमार पुत्र रामपाल और उनकी पत्नी संजना की बेटी मोहनी, बैजनाथ की पत्नी आरती भी ईंट भट्ठे पर काम करते हैं और उनका पुत्र संजय और दो पुत्री रागिनी व पिंन्की भी पढ़ाई से दूर ही हैं। इन सभी के सपने आंखों में कैद हैं। वहीं दिल में अरमान टूट रहे हैं। गौरतलब हो कि जिस समय ईंट भट्ठों पर काम शुरू होता है तो लगभग 50 से 60 परिवार वहां पर काम करते हैं। सभी वहां पर अपनी गृहस्थी बना लेते हैं। उस समय ऐसा लगता है कि वहां पर एक गांव बस गया है। बच्चे भी माता-पिता के साथ सहयोग करते हैं। सभी बच्चों में शिक्षा ग्रहण कर कुछ बनने की चाह तो होती है, लेकिन परिवार की बेड़ियां और बेबसी उनके कदम रोक लेती हैं। कौशाम्बी के ईट भट्ठों पर आसपास क्षेत्र के लोग तो काम करते ही हैं इसके साथ ही बिहार,झारखण्ड,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ के परिवार मजदूरी करने के लिए आते हैं।

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