राकेश केशरी
मंदिर में सुबह से देर रात तक भक्तो का लगा रहा तांता
कौशाम्बी। कड़ाधाम में स्थापित महाभारत कालीन कालेश्वर नाथ मंदिर पौराणिक और ऐतिहासिक है। वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालु हमेशा पूजन-अर्चन करते हैं, लेकिन महा शिवरात्रि पर्व पर श्रद्धालु गंगा स्नान करने के बाद जलाभिषेक के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में श्रद्धा भाव से पूजा-पाठ करने से भक्त की मन्नतें पूरी होती हैं। जनपद के सिराथू तहसील अंतर्गत कड़ाधाम में गंगा नदी किनारे स्थित महाकालेश्वर मंदिर में शनिवार की सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ जमा हो गई। दूरदराज से आए शिव भक्तों ने पहले पतित पावनी मां गंगा में स्नान किया। उसके बाद महाकालेश्वर मंदिर पहुंचकर जलाभिषेक कर भगवान शिव की आराधना की। इस दौरान पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद रहा और मंदिर परिसर के आसपास पुलिसकर्मी घूमते नजर आए। मान्यता के अनुसार, हिंदू धर्म में खंडित शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती है। किन्तु कड़ा के महाकालेश्वर मंदिर में खंडित शिवलिंग की वर्षों से पूजा होती चली आ रही है। भक्तों की मान्यता है कि महाकालेश्वर मंदिर में पूजन अर्चन करने से उनके क्लेश दूर होते हैं और उनके सारे मनोरथ भगवान भोलेनाथ पूर्ण करते हैं। महाभारत काल में कड़ाधाम को कारकोटक वन के नाम से जाना जाता था। इसी वन में पांडव पुत्रों ने अज्ञातवास का कुछ समय व्यतीत किया था। अज्ञातवास के दौरान जब धर्मराज युधिष्ठिर संकट में फंसे तो उन्होंने शिव की आराधना करने के लिए यहीं पर शिवलिंग की स्थापना की। उन्होंने जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की। आज यह स्थान कालेश्वर नाथ नागा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है। मुगल शासक औरंगजेब ने भारत के मंदिरों पर आक्रमण किया था, तब उसके सैनिकों ने कालेश्वर मंदिर पर भी धावा बोला था। मंदिर के महंत उमराव गिरी उर्फ नागा बाबा ने पहले तो मुगलिया सेना से बचाव के लिए भगवान शिव की आराधना की। लेकिन उसके बावजूद भी मुगलियों को शिवलिंग के समीप आते देख वह नाराज हो गए और फरसा से शिवलिंग में प्रहार कर दिया। तभी शिवलिंग से मधुमक्खियों का झुंड निकला और मुगल सैनिकों पर हमला कर दिया। इसके बाद सभी सैनिक भाग खड़े हुए। ऐसा माना जाता है कि तभी से यह शिवलिंग खंडित है और उसी दौर से यहां खंडित शिवलिंग की पूजा होती है। जबकि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडु पुत्रों ने कड़ा के गंगा नदी किनारे स्थित महाकालेश्वर नागा आश्रम में काफी समय व्यतीत किया था। पांडु पुत्रों ने इसी जंगल में कठोर तप किया था जिसके आज भी चिन्ह मौजूद है।