इन्द्रपाल सिंह'प्रिइन्द्र
ललितपुर। उत्तर प्रदेश में साहित्यिक गतिविधियों की सक्रियता और सृजनशीलता की अलग अस्तित्व रखने वाली संस्था उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की ललितपुर इकाई की मासिक बैठक एवं गोष्ठी 15 मार्च 2023 को स्थानीय संत नामदेव मंदिर में सम्पन्न हुई। बैठक की अध्यक्षता विनोद शर्मा ने की और गोष्ठी के मुख्य अतिथि आचार्य लक्ष्मी नारायण विश्वकर्मा रहे, संचालन बृज मोहन संज्ञा ने किया। बैठक दो सत्रों में सम्पन्न हुई। प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि द्वारा दीप प्रज्वलित कर पुष्पांजलि अर्पित की गई तदुपरांत अखिलेश शाण्डिल्य द्वारा सरस्वती वंदना के साथ संस्था के विकास और सुदृणीकरण पर चर्चा हुई और दूसरे चरण में सभी कवियों ने अपनी रचनाओं का काव्यपाठ किया। बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रत्येक माह के द्वितीय शनिवार को सायं 6 बजे से मासिक बैठक का आयोजन किया जाए, इसमें कोई शिथिलता नहीं होनी चाहिए, बैठक स्थल उपलब्धता के आधार पर सुविधानुसार तय किया जाएगा। यह भी निर्णय लिया गया कि यदि कोई संगठन, संस्था, क्लब अथवा कम्पनी कवि सम्मेलन हेतु साहित्य सभा के किसी कवि को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित करती है तो वे उस कार्यक्रम में उपस्थित हों तथा काव्यपाठ के समय अपना परिचय साहित्य सभा के पदाधिकारी के रूप में दें। इसके साथ ही संस्था को भी अपनी उपलब्धियों के बारे में सूचित करें। इसके साथ ही यदि साहित्य सभा को कवि सम्मेलन के संयोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है तो इस आशय का लिखित आमंत्रण आयोजक से प्राप्त किया जाए और संस्था को आर्थिक रूप से सुदृण करने हेतु आयोजकों से अनुरोध किया जाए। यह भी तय किया गया कि नवोदित रचनाकारों की रचनाओं के परिमार्जन और त्रुटि रहित करने हेतु गोष्ठी में चर्चा हो और संशोधित रचना ही सोशल मीडिया पर प्रकाशित की जाए। इस हेतु व्याकरण की समझ रखने वाले विद्वान व्याख्याताओं को भी गोष्ठी में आमंत्रित किया जाये।
द्वितीय सत्र में सभी रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। अखिलेश शाण्डिल्य के सुमधुर कण्ठ ने माँ वाणी की आराधना कर अवसर दिया कवि सुदेश सोनी को, उन्होंने अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा जो दिल भर दे उजालों से वही है रोशनी अच्छी। नहीं जिसमें हुनरबाजी वो चश्में सादगी अच्छी। सुरों की सहजता के साथ आरोह-अवरोह का पूरा पालन करते हुए शायर जनाब मुहम्मद शकील ने अपने जज्बात व्यक्त करते हुए कहा मैं तुझपे कुर्बान, मेरे हिंदुस्तान। इसके बाद पुरुषोत्तम नारायण पस्तोर ने अपनी वय के अनुसार नई पीढ़ी को समझाइश इस प्रकार दी मंदिर-मस्जिद से बढ़कर है दिल में दया दिखाना। मात-पिता की चरण धूल माथे पर नित्य लगाना। गोष्ठी का संचालन कर रहे बृज मोहन संज्ञा जिन्हें हम लोग प्यार से ललितपुर का सकलेन हैदर कहते हैं ने हास्य कवि महेश नामदेव को एक मुक्तक के साथ दावत दी। आदमी विश्वास है संभावना का। आदमी इतिहास है शुभकामना का। आदमी को कम न समझो आदमी तुम, आदमी अनुवाद है परमात्मा का। और महेश नामदेव ने बुंदेली में बदले हुए समय में होली का चित्रण इस प्रकार किया पैलघाई हुड़दंग कितै है, हुरियन की हांक हिरा गयी। मैं कोरी चादर पैन के निकरी औ कोरी की कोरी आ गयी। शीलचंद्र शास्त्री ने अपने गाँव से बिछडऩे की दर्द बयानी कुछ इस प्रकार की, याद बहुत आता है अपना प्यारा-प्यारा गाँव। टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी पर, वो बरगद की छाँव। आखिलेश शाण्डिल्य सुरों और शब्दों के समर्थ प्रस्तोता हैं जीवन से घमण्ड को मिटाने का उदबोधन करते हुए उन्होंने कहा जरूरी है जरूरी है अहं का त्याग जीवन में। वही तो पाओगे जितना तुम्हारा भाग जीवन में। तुम्हारे कर्म से ये धर्म शर्मिंदा न हो जाये, तपन ही पाओगे केवल लगा कर आग जीवन में। के.के.पाठक की बुंदेली रचना में होली की रमक और गुमक देखने को मिली उन्होंने कहा आ गए होरी के हुरदंगा। लै कें हुलिया रंग-बिरंगा। जनाब जहीर ललितपुरी यूँ तो उर्दू के गजलगो शायर हैं किंतु वे हिंदी की एक गजल पढ़ते हुए मुहब्बत के लाइसेंस का नवीनीकरण कराना चाहते हैं, देखें हमेशा मधुर आचरण चाहती है। मुहब्बत नवीनीकरण चाहती है। अंत में अध्यक्षता कर रहे विनोद शर्मा ने ब्रज भाषा में होली का दृश्य इस तरह खींचा हीय कमोरी में प्रीति के रंग कूं घोरे खड़ी इक गाँव की गोरी। हाथनु में पिचकारी लिए अरु होठनु पै मुस्कान की रोरी। गाल-गुलाल के ढेर लिए जब चंद्रमुखी चितवै बनि भोरी। पिय धीर धरै मन में कैसे जब गोरी करे मुस्कान की होरी। अंत में मुख्य अतिथि आचार्य लक्ष्मी नारायण विश्वकर्मा के आशीर्वचन के बाद बैठक और गोष्ठी सम्पन्न हुई।

Today Warta